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________________ उच्च मस्तिष्क से वह संबद्ध रहे, तो मनुष्य का मन प्रकृति का सबसे बड़ा चमत्कार साबित होगा। मन की शक्ति, तन की शक्ति, वचन और धन की शक्ति, समाज और समूह की शक्ति... जब तक गुणात्मक और रचनात्मक बनी रहे तभी तक संसार के लिए हितकर है। वही यदि आपाधापी, गलाघोंट संघर्ष, निंदा और विध्वंस से जुड़ जाए, तो शक्ति, जो प्रकृति से मनुष्य को वरदान स्वरूप प्राप्त हुई है, मानवता के माधुर्य को काटने लगती है। इस तरह से वह स्वयं ही अभिशाप बन जाती है। ___मनुष्य को चाहिए कि वह आत्मविश्वासपूर्वक अपने ऊर्जाकृत उच्च मस्तिष्क को जागृत और सक्रिय करे, ताकि उसके जीवन का आत्मिक और आध्यात्मिक पक्ष सदा सुदृढ़ रहे। अपनी शक्ति को सृजनात्मक और रचनात्मक बनाने में ही मनुष्य का विश्वास होना चाहिए। हमारी शक्ति का चाहे जैसा रूप क्यों न हो, वह विपथगामी हो या शिथिल, आत्मविश्वास से तो पर्वतों को भी हटाया जा सकता है। गाँधी विश्व के एक अच्छे, आदर्श राजनीतिक और राष्ट्र-पिता माने गए हैं। उनकी आत्मकथा जीवन के कई ऊहापोह भरे पक्षों को उजागर करती है। गाँधी का दृष्टिकोण गुणात्मक रहा, रचनात्मक रहा, आत्मविश्वास की भावना से ओतप्रोत रहा। औरों के लिए अपने स्वार्थों का त्याग करने वाले ही महापुरुष होते हैं। हिटलर इतिहास की तारीख़ों में दर्ज होने के बावजूद जनमानस की श्रद्धा के केन्द्र न बन पाए। हिटलर शक्ति का एक हिंसक रूप है। यदि उसकी शक्ति युद्ध और विध्वंसमुखी होने की बजाय रचनात्मक होती, तो वह भी गाँधी की तरह विश्व के आदर्श होते। शक्ति का सृजनात्मक होना ही शक्ति का सार्थक स्वरूप है। सृजनात्मक शक्ति ही अमृत है; शक्ति का विध्वंसात्मक रूप ही विष है। जो विश्व के नक्शे पर रंग न भर पाये, उन्होंने इसके रूप को कुरेचा ही है। हम चाहे अच्छा करें या बुरा, उसकी प्रतिक्रिया और प्रतिध्वनि सूक्ष्म या असूक्ष्म रूप से सारे ब्रह्माण्ड तक फैलती है। आखिर जीवमात्र का पारस्परिक अन्तर्सम्बन्ध है। हम धरती पर आएँ हैं, तो खुशहाली के गीत गाएँ, सृजन करें, घरपरिवार-समाज को सजाएँ। ध्यान For Personal & Private Use of रूपान्तरण/५३ Jain Education International www.jainelibraly.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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