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ध्यान के जीवंत चरण
ध्यान का मार्ग सुगम है, दुर्गम भी; अथवा यों कहिये कि दुर्गम है, सुगम भी। ध्यान का गुर हाथ लग जाये तो ध्यान न केवल सुगम है, वरन् जीवन का सबसे बेहतरीन आध्यात्मिक प्रयोग भी। जो केवल ध्यान को क्रिया-योग मानते हैं, ध्यान के प्रति विधि-सापेक्ष दृष्टिकोण ही रखते हैं वे ध्यानयोग की क्रियाएँ भर संपादित कर लेंगे, विधि भर हो जाएगी, वे आत्मा को ढूँढते रहेंगे लेकिन आत्मलीन नहीं हो पाएँगे। आत्मा अथवा भगवान को खोजना केवल दिमागी खरपच्ची है, किन्तु उसमें लीन होना हृदय का हृदयेश्वर से मिलन है।
जब तक आत्मा से मिलने की तृषा रही, तब तक आत्मा से मिलन न हो पाया। तृषा जैसे ही मौन हुई कि स्वतः आत्मलीन हो गया। अगर हमें भगवद्-दर्शन करने हों तो केवल उससे मिलने की भूख रखने भर से
___ ध्यान के जीवंत चरण / ३९
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