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ध्यान का प्राण: साक्षी - भाव
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ध्यान हमारे समग्र जीवन के विकास का आधार है। ध्यान विधि नहीं, विकास है, जीवन की समग्रता का विकास, चेतना की समग्रता का विकास । विधि प्रवेश के लिए होती है । परिणति के लिए तो अंततः विधि से विमुक्त हो जाना पड़ता है। विधि तो मन और बुद्धि को लक्ष्योन्मुख बनाने के लिए है । विधि के द्वारा हम स्वयं में प्रवेश पा लें और जब लगे हमारा अंतगुहा में प्रवेश हो चुका है, तो अपने आपको विधि या विधि के चरणों से मुक्त कर लें । विधि तो ऐसे है जैसे बीज का माटी में उतरना।
बीज माटी में उतर गया फिर उसके साथ छेड़-छाड़ न करें । उसका केवल ध्यान रखें। बीज को स्वतः फूटने का अवसर दें। हमें केवल उस बीज के लिए सजग रहना होगा । वह सूख न जाए, इसलिए उसका सिंचन करना होगा। ध्यान का सतत स्मरण ही ध्यान की धारा को आगे बढ़ाता है।
ध्यान का प्राण : साक्षी भाव / २७
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