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आनंद ध्यान की परम निष्पत्ति है। आनंद के आकाश में तीनों का एक साथ संगम हो जाता है। प्रेम का भी, करुणा का भी और शांति का भी। आनंद केन्द्र में है। प्रेम, शांति और करुणा उस केन्द्र की परिधि है। मनुष्य का अंतर्हृदय प्रेम, शांति, करुणा और आनंद का धाम है। ध्यान व्यक्ति को उसके सच्चे स्वरूप का, निजता का बोध कराता है।
सच्चे स्वरूप के बोध से ही जीवन में सदाबहार आनंद घटित होता है। एक ऐसा आनंद घटित होता है जिसका न कोई निमित्त होता है न कारण - अनायास, अनवरत। यह आनंद तो सत् का आनंद है, चित् का आनंद है। योग इसे ही सच्चिदानंद कहता है। ___ जीवन में असली साधना तो वही है जिसकी परिणति सदाबहार आनंद के रूप में होती है। परिस्थितियाँ चाहे जैसी बनें, हम जब हर परिस्थिति में आनंदित हैं तो ध्यान आपको सध गया। आप स्थितप्रज्ञ हुए। आप बुद्धत्व के करीब पहुँचे। आप जीवन-सिद्ध और ध्यान-सिद्ध हुए। समयातीत सामायिक सिद्ध हुए।
मनुष्य हार्दिक हो, हृदय-सिद्ध हो, जीवन की हर डगर पर ध्यान उसका आधार हो। जीवन अधिक से अधिक प्रेमपूर्ण हो। करुणा की प्याली सदा छलछलाती रहे। मन में सदा शांति और चित्त में सदा मुस्कान हो। ओह ! कितना सरल सूत्र है : मुस्कान ही मुक्ति है।
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२६ / ध्यान का विज्ञान
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