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________________ हृदय का प्रेम और हृदय की करुणा - जीवन-यात्रा के जहाँ ये दो मील के पत्थर हैं, वहीं चित्त की शांति और मन का मौन जीवन-पथ के सच्चे मित्र हैं। शांति घटित होगी मन के विसर्जन से।मौन घटित होगा चित्त के निर्मलीकरण से, स्वयं के एकत्व और त्रैकालिक सत्य के बोध से। मन में शांति चाहिये तो मन के अनुसार न चलें, मन के गुलाम न हों; स्वयं पर स्वयं का स्वामित्व हो। मन तो लुहार की वह भट्टी है, जिसमें दबे पड़े अंगारों को हवा दोगे तो चिंगारियाँ उठेगी। मन के प्रति स्वयं ही मौन हो जाओ, तटस्थ, सजग और साक्षीभर हो जाओ, तो मन की अंगीठी स्वतः ही बुझ जायेगी। मन के बुझने पर जिस संपदा से साक्षात्कार होता है उसे ही हम बोध और संबोधि कहते हैं। मन के मौन होने पर जो रोशनी प्रगट होती है उसे हम मन की शांति कहते हैं। मनुष्य ने शांति के जो निमित्त और माध्यम चुने हैं, वे कितने सफल हो पाते हैं, मनुष्य स्वयं उसका ज्ञाता और उपभोक्ता है। क्रोध को प्रगट करके, उत्तेजना को बाहर उलीच कर आदमी स्वयं को शांति के द्वार पर अनुभव करता है, किन्तु वह शांति कितनी क्षणिक होती है। पति को पत्नी से मिलने वाली अथवा पत्नी को पति से मिलने वाली उपभोगमूलक शांति और अशांति क्षण-क्षण बनती और मिटती रहती है। मन फिर भी शांत नहीं होता। थोड़ी-सी धौंकनी चली कि अँगीठी सुलग चली। थोड़ा-सा निमित्त मिला कि काम-क्रोध की चिंगारी दावानल का रूप ले बैठी। जीवन में शांति की तो वह रसधार हो, जिसे प्रतिकूलता तो दूर, अनुकूलता भी प्रभावित न कर सके। कोई गीत गा जाये तो उसकी मौज, और यदि कोई गाली दे जाये, तो उसकी मज़बूरी। अपना राम तो दोनों में ही रमता राम रहा। किसी की गाली इसलिए प्रभावी हो जाती है, क्योंकि हम गीत न बन पाये। कोई अंगारा हमें इसलिए सुलगा जाता है, क्योंकि हम सरोवर न हो पाये। ध्यान हमें शांति का वह सरोवर प्रदान करता है, जिसमें मनुष्य स्वयं को सदा ही सद्यःस्नात पाता है। जब भी उसे देखो शांति के सरोवर में हर समय नहाया ही देखो। हृदय के ध्यान से जुड़कर हम जहाँ और अधिक प्रेमपूर्ण और करुणामय होते हैं, वहीं मन की उठापटक और तनाव से दूर, जीवन की सौम्य शांति के स्वामी होते हैं। ध्यान के जीवन-सापेक्ष परिणाम / २५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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