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कि घास का एक तिनका भी हमारे प्रेम और मैत्री-भाव के माधुर्य से वंचित न रहे। हमारी संवेदनशीलता इतनी हार्दिक, विस्तृत और अस्तित्वपूर्ण हो
और यह कार्य संपन्न करेगा ध्यान। ध्यान यानी अस्तित्वमय होने की कला। ध्यान यानी शांति की सुवास। ध्यान यानी स्वयं को स्वयं का आशीष। ध्यान यानी जीवन का सम्मान और पुरस्कार। ध्यान धरो और संसार में जीयो।
ध्यान से संवेदनशीलता का विकास होता है और संसार के बीच जीने से संवेदनशीलता प्रतिफलित और परिणित होगी। हम हृदय में ध्यान धरें। स्वयं को और अधिक प्रेमपूर्ण करुणापूरित होने दें। हमारा जो पथ होगा, हमारा जो जीवन होगा, वह स्वयं के लिए, सबके लिए स्वत: समाधानमूलक होगा। हमारी ओजस्विता और तेजस्विता से, हमारे प्रेम और मुस्कान से, उच्च मानसिक एवं आत्मिक अवस्था से हर कोई प्रभावित और आकर्षित होगा। अस्तित्व पुष्पहार लिए कहेगा - स्वागत है तुम्हारा, कृतपुण्य हो
तुम।
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Jain E२०at ध्यान का विज्ञान
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