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मन का बिखराव विकास में बाधा है, मन का समीकरण विकास का आधार है। मनुष्य का सामान्य मन तो क्रियाशील रहता ही है, किन्तु असाधारण मन का स्वामी हुए बगैर मनुष्य असाधारण पुरुष नहीं हो सकता। हम अपने साधारण विचारों का त्याग करें, स्वयं के सोये आत्म-विश्वास को जगाएँ, असाधारण विचारों के स्वामी बनें। प्रत्येक मनुष्य अपने आप में प्रकृति की विशिष्ट रचना और सौगात है। जीवन में गौरव करने के लिए बहुत कुछ
है।
___ ध्यान का अर्थ जीवन-विमुख या कार्य-विमुख होना नहीं है। ध्यान तो हमें जीवन के प्रति और अधिक सजग और आनंदित रहने की कला देता है। आम आदमी जीवन के प्रति लापरवाह है। ध्यान मनुष्य को जीवन का सम्मान देता है। ध्यान जहाँ एक ओर हमें स्थितप्रज्ञ बनाता है वहीं हमारी जीवन-शक्ति को वह स्वरूप देना चाहता है जिससे किसी का स्वार्थ नहीं वरन् सारे संसार का नौनिहाल हो, व्यक्ति विश्व के लिए उपयोगी और वरदान साबित हो।
माना, व्यक्ति विश्व के आगे कुछ नहीं है। विश्व के समक्ष व्यक्ति माटी का कण भर है। किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिये कि अणु-बम कण का ही विस्तार और विस्फोट है। व्यक्ति के आगोश में विश्व नहीं आ सकता है, किन्तु व्यक्ति-व्यक्ति के द्वारा विश्व का नवनिर्माण और कायाकल्प अवश्य हो सकता है।
हम कौन हैं हमारे लिए यह मुद्दा बड़ा मायने रखता है, परन्तु हमारी चेतना कहाँ है यह उससे भी अधिक अहम सवाल है। हमारे लिए अपना
और विश्व का कोई अर्थ है भी या हम किसी चलती-फिरती लाश भर हैं। हमें जीवन-सापेक्ष होना होगा। यह लोक, परलोक में उलझने की बजाय
आत्म-सापेक्ष चिंतन-दृष्टि अपनानी होगी। जिसके लिए जीवन का अर्थ होगा, वही विश्व को अपनी ओर से सार्थकता का सौंदर्य प्रदान कर सकेगा। मनुष्य सृष्टि का अमृत है। जब अमृत से 'अ' की अंत्येष्टि हो गई तो हमारे पास जीवन का सम्मान एवं गौरव कहाँ बचा? सभ्यता और संस्कृति के मूल्य कहाँ बचे हैं ! अब बचा है केवल स्वार्थ, बगैर आत्मा के लाश का लाश से खेले जाने वाला खेल। भला जब हम अपनी चेतना के प्रति सजग
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