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होती है, मगर जो आकाश है वह इन सबसे अस्पर्शित और निस्पृह बना रहता है। बिजलियों के गरजने से उसका मौन नहीं टूटता, अमावस के घिर
आने से वह अंधकारमय नहीं होता। सूरज के डूब जाने का यह अर्थ नहीं हुआ कि आकाश अस्त हो गया है। जिनके पास आँख है, उनके लिए रात के अंधियारे में भी सूरज की रोशनी है। जिनके पास आँख नहीं होती, समझ नहीं होती, वे ही कहते हैं कोई जन्मा, कोई मरा, कोई उगा, कोई अस्त हुआ।
आकाश तो जहाँ है, वहीं है। सूरज की रोशनी जहाँ है, वहीं है। तुम ही घूमते हो, तुम्हारी ही पृथ्वी परिक्रमा लगा रही है। पृथ्वी पीठ कर लेती है तो आसमान में रात हो आती है। पृथ्वी सामने हो आती है तो आसमान उजाले से भरा दिखाई देने लग जाता है। स्वयं की सत्ता तो आकाश की तरह है। वह सदा शून्य और मौन है, शांत और निस्पृह है। जितनी देर पृथ्वी और तुम, उसके सामने रहोगे, उतनी देर वह तुम्हें स्वच्छ और उज्ज्वल दिखायी देगा। पूरे चौबीस घण्टे ही पीठ कर लो तो दिन होगा ही नहीं, रात-ही-रात होगी।
स्व-सत्ता सदा मौन है, स्व-सत्ता का केन्द्र ही शांत केन्द्र है। मौन से मौन में प्रवेश होता है। मन के मौन से स्व-सत्ता के शांत मौन की ओर कदम बढ़ता है और उस मौन तक पहुँचने के लिए अस्तित्वमय होना होगा। जीवन की मूल ऊर्जा, जीवन के मूल तत्त्व तक पहुँचना होगा, अपने आप में आना होगा, अतंर्दृष्टि को अपने में लाना होगा। ___हम स्वयं में रहें, सदा मुस्कराते रहें । करणीय सब कुछ करें, पर उनसे अकर्ता और निस्पृह बने रहें। सबके साथ रहें, सबसे प्रेम करें, पर स्वयं के एकत्व-बोध को बनाये रखें। अध्यात्म मनुष्य को सुख से जीने की कला देता है। अध्यात्म के पास वह गुर है, वह कुंजी है, जिससे आदमी संसार में समाधि के फूल खिलाता है। अपनी केवलता का, एकाकीपन का बोध ही कैवल्य को अस्तित्वगत जीवन में जीना है। जीवन को सदा मुस्कराते हुये जीयें, मुस्कान ऐसी हो कि एक बार मुरझाया हुआ फूल भी खिल उठे, टूटा हुआ चाँद भी हँस पड़े, डूबा हुआ सूरज भी उग आये।
00 For Personal & Private Use Only स्व यं की अन्तर्यात्रा १५०.०
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