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________________ सम्राट का सिर झुक गया। उसे अपनी अनाथता का अहसास हुआ और अनाथी मनि की सनाथता का। सम्राट ने इतना ही कहा, 'भगवन, आपका जीवन-बोध धन्य है। सच तो यह है कि आप अनाथ नहीं, सनाथ हैं। अपनेआपके आप सम्राट हैं।' आखिर हम सब अकेले हैं। अकेले के अलावा तो सब झमेले हैं। एकाकीपन के बोध से जीवन में सच्चे संन्यास का कमल खिलता है, सम्यक् ज्ञान की ज्योति उजागर होती है। ___ महावीर ने संन्यासी को मुनि की संज्ञा दी है। मुनि वह जिसके मन में मौन घटित हुआ। मुनि वह जो मौन की अलख से अभिभूत हुआ। मौन घटित होगा कैसे? सीधा-सा जवाब है स्वयं के एकाकीपन के बोध से। यह बोध जितना गहरा होगा, मौन उतना ही विराट होता जाएगा। तनमन मौन होगा, चेतना में जागरण का गीत फूटेगा। संबोधि का सौरभ उठेगा। मौन में ही समाधि है। मौन में ही ब्रह्मानंद और परमानंद की अनुभूति है। मौन में ही शुक्लध्यान का आकाश उतरता है और मौन में ही कैवल्य से साक्षात्कार होता है। एकाकीपन का बोध और चित्त में मौन, साधना की यही आत्मा है। एकाकीपन के बोध से मौन घटित होगा अथवा इसे यों कहें कि मौन में उतरने से अपने स्वत्व का, एकाकीपन का बोध गहरा होगा। चित्त के शांत और स्वच्छ हुए बगैर स्वयं की मूल सत्ता तक पहुँच नहीं हो सकती। जो उथल-पुथल नज़र आती है, वह सागर के ऊपर उठने वाली लहरों की उठापटक है। हवाओं के निमित्त प्रभावी होते हैं। तूफ़ान सागर को पूरा आंदोलित प्रभावित कर डालता है। किन्तु मज़े की बात यह है कि यह जो कुछ घटित होता है वह सब परिधि पर है। सागर अपने अंतस्तल में शांत ही रहता है। जो हमारा मूल शांत केंद्र है, वह कभी अशांत नहीं होता। उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता। स्वयं के एकत्व में, स्वयं के निजत्व में, स्वयं की आत्म-सत्ता में शाश्वत सुखद मौन है, सनातन आनंद है। अंतस् की सत्ता तो वह आकाश है, जिसमें रात-दिन आते हैं, ऋतुएँ बदलती हैं, मेघ-घटाएँ घिर आती हैं, बादल बरसते हैं, पौ फटती है, साँझ Jain १४० ध्यान का विज्ञान For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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