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भीतर हों, जीवन की मूल चेतना की ओर हों। अंतर्जगत में हुई हमारी बैठक हमारे चित्त की चंचलता और उच्छृखलता को तिरोहित करेगी। देह के विकृत धर्मों से हमें ऊपर उठाएगी। हम जीवन को जीएँगे, जगत में जीएँगे, लेकिन ऐसे जैसे जंगल के घुप्प अंधियारे में दीपक जलता हो, प्रकाश को हाथ में थामे कोई राहगीर गुजरता हो। उसके जीवन में सौंदर्य होगा, समरसता होगी। उसका जीवन उसके लिए आनंद का उत्सव होगा। प्रकृति और परमात्मा के घर से मिला हुआ एक वरदान, एक चैतन्य पुरस्कार !
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८/ ध्यान का विज्ञान
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