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________________ मंगलमय जीवन हो । सत्यम् शिवम् सुंदरम् सबके जीवन का दर्शन हो । मंगलमय जीवन हो ॥ मनुष्य जैसा होगा, आईने में वैसी ही झलक आएगी। जीवन में मुस्कान होगी तो आईना भी तुम्हें देख मुस्करायेगा । हमारी उदासीनता में आईना भी उदास और रुग्ण हो उठेगा। एक सुन्दर चेहरे की पहचान यही है कि मुस्कान से जिसके चेहरे की सुषमा और खिल उठे। जिसके मुस्कराने से चेहरा खिल उठे वह चेहरा सुंदर, वहीं मुस्कराने से चेहरा और भद्दा लगने लगा वह चेहरा विकृत । कहते हैं : किसी व्यक्ति को पहली बार कोई काँच का टुकड़ा मिला। उसने उस काँच में, आईने में झाँका तो उसे लगा कि काँच में जो चेहरा दिखाई दे रहा था, वह उसके पिता का था । बड़ा प्रसन्न हुआ, क्योंकि पिता की याददाश्त के रूप में उसके पास पिता का कोई चित्र नहीं था । घर पहुँच कर उसने अपने पिता के 'चित्र' को आलमारी में छिपा कर रख दिया यह सोचकर कि उसके पिता के 'चित्र' को फाड़ न डाले । वह सो गया, मगर पत्नी ने उसे आलमारी में कुछ छिपाते देख लिया । पत्नी ने पीछे से वह आईना निकाला और उसमें देखा तो चौंक पड़ी, आग बबूला हो उठी, बुदबुदायी, ओह तो मामला यह है । मेरा पति इस चुड़ैल के चक्कर में.... उसने शीशा उठाया और जोर से जमीन पर दे मारा। पति जग गया। उसे अफसोस हुआ कि इस तरह से उसके पिता की याददाश्ती भी टुकड़े-टुकड़े हो गई । चित्र की मृत्यु हो गई । I 1 आईने में जो दिखाई दिया वह हम ही थे । जिसे हमने पिता, कहा, वह पिता नहीं, हमारी अपनी प्रतिच्छवि थी । जिसे हमने चुड़ैल कहा, वह भी हमारा ही प्रतिबिम्ब रहा । आईने में कोई नहीं था । चुड़ैल का इल्ज़ाम हम पर ही लौटकर आया। आदमी जैसा होता है, उसकी प्रतिक्रिया और प्रतिध्वनि वैसी ही होती है । यह सारा जगत हमारे ही जीवन का विस्तार है और जो जगत से हमें मिलता है, वह हम पर लौटकर आई हुई हमारी ही प्रतिध्वनि है। ६ / ध्यान का विज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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