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करने के लिए मनोयोगपूर्वक, प्रसन्न हृदय से ओंकार का पाँच-सात बार उद्घोष करें और ध्यान-विधि में उतर जाएँ।
ध्यान-विधि
पहला चरण
श्वास-दर्शन : एकाग्रयोग पहले 10 मिनट तक गहरे श्वास-प्रश्वास लें। तत्पश्चात् देह और इन्द्रिय-विषयों से स्वयं को निर्लिप्त कर, सहज तन्मयतापूर्वक श्वास को देखें। श्वास पर स्वयं को एकाग्र, सजग और केन्द्रित करें। श्वास के साक्षी बनें। भीतर-बाहर आ-जा रही प्रत्येक साँस के प्रति सजगता और होश ही ध्यान का प्रवेश-द्वार है। साँस की गति जितनी सहज, सौम्य और गहरी हो, उतना अच्छा। धैर्यपूर्वक श्वास में डूबते जाएँ।
(विशेष : श्वास-दर्शन में सजगता बाधित होती लगे, तो श्वास के साथ 'ॐ' या 'सोहम्' रूप बीज-मंत्र का स्मरण किया जा सकता है।)
दूसरा चरण
चित्त-दर्शन : शान्तियोग स्वयं को भुकुटि-मध्य स्थिर करें, अग्र मस्तिष्क में केन्द्रित करें अपने आप को तन-मन, जगत-परिजन से अलग देखें। मन को मौन, तन्मय और विलीन हो जाने दें। विचार-विकल्प उठने शुरू हों, तो उनसे अलग होकर उनके साक्षी बनें। वृत्ति-विकल्प के दृष्टा बने । चित्त की स्थिति को, लेश्याओं को पहचानें । मन को सजगतापूर्वक सुझाव दें- शांत.....शांत.....शांत..... मन शांत, विचार शांत। यह सुझाव एकाधिक बार दोहराया जा सकता है। सुझाव बहुत कोमलता से दें। और इस सुझाव के साथ शांत मन हो जाएँ, ध्यानमय हो जाएँ, स्थितप्रज्ञ हो जाएँ। शांत और एकाग्र मन ही ध्यान का सुन्दरतम क्षण है। इस चरण की सुन्दरतम उपलब्धि है।
स्वयं की सजगता और चेतना को भृकुटि-मध्य केन्द्रित करने से मन का तमस् शिथिल होता है, ज्योति-केन्द्र सक्रिय होता है, मेधा और प्रज्ञा प्रखर होती है।
..ध्यान : विधि और विज्ञान / १११ .
ध्यान
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