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________________ हमें परमात्मा का प्रसाद चाहिये, आत्मा की मुक्ति हमें अभीप्सित है, पर पहले हम काययोग और मनोयोग को तो समझें। अपने शरीर और मन के स्वरूप, लक्षण तथा स्वभाव को समझना आत्मज्ञान के प्राथमिक चरण हैं। हमें शरीर के जन्म, उसके विकास, परिवर्तन और शरीरगत समस्त स्वभावों को समझना ही चाहिये। हर विद्यार्थी को शरीर-विज्ञान का व्यावहारिक ज्ञान होना चाहिये। हम अपनी संतान को चाहे जिस कक्षा या वर्ग की पढ़ाई करवाएँ, उसे मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं को भी पढ़ाया जाना चाहिये। ___ मनुष्य के लिए व्यावहारिक, सामाजिक और शैक्षणिक ज्ञान की भी आवश्यकता है। मन को न समझने और उसे समझाने की कला से अनभिज्ञ होने के कारण ही मनुष्य अपने आपसे कट रहा है। वह परास्त, अशांत और दिग्भ्रान्त है। हमें अपने जीवन में विज्ञान, कला और ध्यान तीनों को आत्मसात् करना चाहिये। विज्ञान और जगत् के पदार्थगत ज्ञान के लिए, कला जीवन का सृजनात्मक आयाम देने के लिए और ध्यान जीवन की आन्तरिक शुद्धि और पुलक के लिए है। वस्तुतः चेतना का विज्ञान ही ध्यान है। मनुष्य की उच्च ऊर्जाकृत शक्ति के जागरण के लिए ध्यान वरदान साबित हो सकता है। जनमानस में यह एक भ्रान्ति है कि ध्यान करने से देवी-देवताओं के दर्शन होते हैं और जब किसी को महीनों-वर्षों ध्यान करने के बावजूद ऐसी कोई अनुभूति नहीं होती, तो वे ध्यानमार्ग के आलोचक तक बन जाते हैं। ध्यान से देवी-देवताओं के नहीं वरन् भीतर बैठे देवता के दर्शन होते हैं। भीतर के देवता से मतलब है हमारे अपने ही अस्तित्व से, स्वयं में समाहित और निर्झरित आनन्द से, सत्य से, शून्य से। यह तो नहीं कहा जा सकता कि ध्यान करने से किसी देवता के दर्शन होते हैं: हाँ, ध्यान हमें देव जरूर बना देता है। जीवन में दिव्यत्व का संचार होना ही तो देव हो जाना है। ध्यान अन्तस् में रहने वाली शैतानियत की मृत्यु है, देवत्व की प्रेरणा और उसका आचरण है। ध्यान वह दीप है, जिसकी रोशनी में जीवन स्वर्गिक होता है, देवत्व में अधिष्ठित होता है। अस्तित्व की उच्च सत्ता का स्वतः हम पर सान्निध्य बनता है। यह मार्ग पूरी तरह जीवन-सापेक्ष है और इसे Jain Education International For Personal & Private ध्यान : विधि और विज्ञान / १०५ ..
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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