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________________ जीवन - सापेक्ष होना चाहिये । प्रिय-अप्रिय संवेदनाओं के बावजूद तटस्थ रहना, स्व- पर की भेदरेखाओं से विरत रहना, हीन-महान की भावनात्मक स्थितियों में स्थितप्रज्ञ रहना, सदा करुणाभिभूत एवं हर हाल में मस्त रहना ध्यान की सिखावन है । कर्त्तव्य-कर्मों को करते हुए भी कर्त्ता - भाव के अहं से मुक्त रहना, मम की बजाय सर्व के प्रति अमृत प्रेम से ओतप्रोत रहना ध्यान की परिस्थितियों में प्रमुख हैं। सकारात्मक सोच और आत्म-विश्वास जीवन को नया आयाम प्रदान करने के लिए महामन्त्र हैं । ध्यान स्पष्टतः स्वयं को समझने और अपनी चेतना को तराशने का उपक्रम है । यह भीतर होने का अभ्यास है, अन्तःस्थित सत्ता के साथ अपना सम्बन्ध-योजन है। ध्यान - योग से हर मनुष्य को गुजरना चाहिये यह बात तो ठीक है, किन्तु दुनिया में ध्यान के नाम पर इतनी विधियाँ/ प्रक्रियाएँ प्रचलित हैं कि व्यक्ति किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो जाता है कि वह कौन-सी विधि अपनाए । सभी विधियाँ अच्छी हैं। मनुष्य को प्रयोगधर्मी होना चाहिए। जीवन कायाकल्प के लिए बतौर प्रयोग के किसी भी विधि को आजमाया जा सकता है। विधियाँ चाहे कितनी भी क्यों न हों, हमारे साथ कौन-सी विधि अनुकूल होगी, इसका समाधान स्वयं हमें हमारे भीतर बैठा देवता दे देगा। जिससे हमारा चित्त परिष्कृत और चेतना परिपूर्ण हो, वही श्रेष्ठ पद्धति है । ध्यान की सौ से ज्यादा विधियाँ - पद्धतियाँ प्रकाश में आ चुकी हैं। विधि इतनी अर्थपूर्ण नहीं होती। अर्थपूर्ण होती है विधि के प्रति हमारी तन्मयता, अन्त:करण में उतरने और जीने की गहराई । मैं जो विधि सुझाता हूँ वह कहाँ से आती है, उसका मूल स्रोत किससे जुड़ा है, यह तो भीतर बैठा देवता जाने। वह सुझाता है, संबोधि उसकी है। आज ध्यानयोग की सारे विश्व को जरूरत है । मनुष्य के पास मन की शांति के समाधान नहीं हैं। ध्यान इसके लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि हम धर्म को विश्व में प्रतिष्ठित और प्रचारित करना चाहते हैं, तो मैं कहूँगा हम ध्यान - योग को मील का पत्थर बनाएँ । मानसिक विकास के लिए स्वाध्याय, आत्मिक विकास के लिए ध्यान और हार्दिक विकास १०६ / ध्यान का विज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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