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________________ मार्ग है; इन्द्रिय-विजय, कषाय-कर्म-विजय का मार्ग है। अध्यात्म के अमृत बीजों का पल्लवन ध्यानयोग से होता है। हम चाहे महापुरुषों की पूजा-स्तुति करें या नाम-स्मरण, बगैर ध्यान के इन्हें आत्मसात् और चरितार्थ नहीं किया जा सकता। ध्यान की समझ हमसे छूट जाने के कारण ही धर्म के अमृत मार्ग भी हमारे लिए महज झालर-झांझर, यशो-कीर्तन, प्रलोभन और प्रदर्शन के साधन बन गये। बोध दरकिनार हो गया, अधकचरी कट्टरता एवं रूढ़ता अनेक रूपों एवं पर्यायों में मानवता के पास रह गई। ज्योति महागुहा में ही रह गई, मनुष्य के हाथ में मशाल के नाम पर महज डंडे रह गये। यह वास्तव में मूल मार्ग का अवमूल्यन हुआ। जो लोग महापथ की ओर बढ़ना चाहते हैं, उच्च मस्तिष्क-शक्ति को विकसित करना चाहते हैं, उन्हें संबोधिपूर्वक ध्यानयोग को जीने का निवेदन है, निमन्त्रण है। ऐसा करके वे अपने शरीर, मन और आत्मा के साथ न्याय कर सकेंगे। ___आज का मनुष्य चाहे धनाढ्य हो, मध्यमवर्गीय अथवा अभावग्रस्त मन की कलुषितता एवं अशांति उसका सबसे बड़ा रोग है। वह बहुत कुछ पाकर भी आत्म-व्यथित है; वह अनजाने भय से संत्रस्त है, मानसिक विकतियों से उद्विग्न है। वह सब कुछ पाकर भी और सब कुछ त्याग कर भी सुख और शांति का वह ऊर्ध्व रूप प्राप्त नहीं कर पा रहा है, जिसकी उसकी अन्तरात्मा को प्यास है। उसकी अन्तरात्मा की कसक और पीड़ा को कोई बुझा सके, दूर कर सके, ऐसे व्यक्तित्व का सान्निध्य पाने में उसे असफल होना पड़ रहा है। भगवान् करे ऐसे समस्त लोगों को ध्यान की, संबोधि की प्रेरणा दें, जिससे वह मुखातिब हो सके अपने आप से। उतर सके अपने आप में, अपने ही भीतर के बसंत-पतझड़ से घिरे उपवन में। देखता हूँ लोग व्रत-तप खूब करते हैं। पर प्रश्न यह है कि क्या उनका व्रत-तप सार्थक हो पाता है? एकादशी के व्रत को द्वादशी की दादी बना लिया जाता है और उपवासों को भी कीर्तिमानों की स्पर्धा में जोड़ दिया जाता है। व्रत तो विरति से पूरा होता है। 'उत्तराध्ययन' में कहा है कि ध्यान तप का अंग है, पर कितना अच्छा हो मनुष्य मन की निर्मलता के ध्यान : विधि और विज्ञान / १०३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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