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चिंतन केवल सामाजिक, राष्ट्रीय अथवा अंतरराष्ट्रीय धरातलों तक को छूता हुआ न हो वरन् हम इतने उच्च चिंतन के स्वामी बनें कि हमारा चिंतन अंतरग्लोबीय हो जाए, समग्र ब्रह्माण्ड से जुड़ जाए। एक ग्रह से ही नहीं, और ग्रहों से जुड़ जाए। हमारी और हमारी भावी पीढी की सरक्षा समग्र की सुरक्षा पर ही निर्भर है। हम जरा अपनी अंतरदृष्टि को खोलें और फिर जगत को निहारें तो स्वतः स्पष्ट हो जाएगा कि हमें कितना विराट् होना होगा, कितना ऊँचा उठना होगा।
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ध्यान और विश्व का भविष्य / १०१..
ध्यान
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