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साधनों की है उससे कहीं ज्यादा ध्यानमार्ग की है, ताकि मनुष्य अपनी उच्च मानसिक क्षमताओं को प्रगट कर सके।साधारण का विसर्जन करके असाधारण को उपलब्ध हो सके।
जीव की भूमिका पर हम बहुत जी लिये। प्राणियों की प्राण-भूमिका से सदी-दर-सदी गुजरते आये। अब जीव की भूमिका नहीं चलेगी। हमें शिव की भूमिका पर कदम रखना होगा। धरती पर उच्च ऊर्जाओं का विकास हो चुका है। उच्च शक्तियाँ काम कर रही हैं। हमें अपनी उच्च ऊर्जा और शक्ति को जगाना है क्योंकि उसके बिना अब काम नहीं चलने वाला है। आज तो पूरे पृथ्वी-ग्रह का संचालन अंतरिक्ष स्थित उपग्रहों से होने लग गया है। अब दुनिया में लड़ाई आमने-सामने की नहीं रही, प्रक्षेपास्त्रों की हो गई है। उपग्रहों से जिस तरह हम जुड़ते चले जा रहे हैं उससे यह संभावना नज़र आ रही है कि आने वाले समय में हम और हमारी धरती उपग्रहों पर आधारित हो उनकी कृपा पर अवलंबित हो जायेगी।
आज विज्ञान को बेहिसाब विस्तार हो गया है। अतः केवल मनुष्य की शक्ति से काम नहीं चलेगा। मनुष्य को अपनी उच्च शक्तियों की ओर बढ़ना होगा। हम अपने साधारण मन से ऊपर उठकर ही असाधारण अतिमनस् तत्त्व की ओर बढ़ पाएँगे, जिसका साहचर्य बुद्धि के साथ है। यह अपनी उच्च चेतना को समग्र अस्तित्व से जोड़ना होगा तभी हम विश्व-व्यापी समाधान प्राप्त कर सकेंगे। समय निरन्तर करवटें बदल रहा है। युग का हर दिन नया रूप और नयी खोजें लेकर आ रहा है। फिर हममें ही अकर्मण्यता क्यों?
हमारा शरीर हमें प्रकृति की सौगात है। शरीर के इस महामन्दिर में, महान् प्रयोगशाला में कई अद्भुत अनूठी आश्चर्यजनक शक्तियाँ, ऊर्जाएँ
और क्षमताएँ समाविष्ट हैं। हमें उन ऊर्जाओं से अपना संबन्ध जोड़ना होगा, प्रयास करना होगा, जीवन के साथ नया प्रयोग करना होगा। जगत के कायाकल्प के लिए जीवन को नये रूप और नये आयाम देने होंगे। जगत् में विज्ञान का जितना विस्तार हुआ है वह सब मनुष्य की ही देन है। हमें तो वास्तव में अब वे नये क्षितिज तलाशने होंगे जो विज्ञान से भी ऊपर के हों, विज्ञान का भी नियंता हो। हमारी मनीषा की दूरदर्शिता इस बात में है कि हमारा १०० / ध्यान का विज्ञान
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