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________________ ही बाहर के निमित्त से । मन चलता रहता है, बहता रहता है । मन का वश चले तो वह सारी दुनिया को हड़प ले । आदमी का जोर चलता नहीं, वरना हर आदमी का मन चाहता है कि वह विश्व - विजेता सिकन्दर बने । सारी दुनिया पर उसका ही स्वामित्व और शासन हो । धरती पर अरबों लोग रहते हैं। अगर हर आदमी अपने मन की पूरी करना चाहे तो एक दुनिया नहीं, अरबों दुनिया चाहिये । मनुष्य का मन इतना बेलगाम, बेहिसाब है । मन में स्वार्थ, हिंसा और व्यभिचार के इतने पुलिंदे भरे पड़े हुए हैं कि अगर मनुष्य ने अपने मन का समाधान न निकाला तो दुनिया में आज ऐसे संहारक अस्त्र-शस्त्र ईजाद हो चुके हैं कि वे दुनिया को एक बार नहीं, सौ-सौ बार नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। मनुष्य ने प्रलय की अतिक्षमता अर्जित कर ली है । हमारे नये निर्माण हमें भावी विध्वंस के संकेत देते हैं। मनुष्य धरती के लिए वरदान साबित हो, इसके लिए हमें मन से ऊपर उठना होगा । मन पर अंकुश लगाना होगा और यह अंकुश लगाने का काम बुद्धि के द्वारा होगा। गीता में बुद्धि-योग को राज-योग संज्ञा दी गई है। बुद्धि से जीना, विवेक से जीना, बोध और ज्ञानपूर्वक जीना समझदार लोगों का काम है। I मनुष्य का अब केवल अपने परिवार के भविष्य के लिए चिंतित होने से कुछ नहीं होगा। हमें पूरी पृथ्वी पर ध्यान देना होगा । अब युग व्यक्तिवादिता का नहीं रहा है । सामूहिकता का आ गया है। सामूहिक उत्पादन हो रहे हैं और सामूहिक ही विध्वंस हो रहे हैं। हमें अब समग्रता से सोचना होगा । अपनी और अपने परिवार की सम्पूर्ण भावी सुरक्षा के लिए हमें सारे जगत की भलाई के लिए ध्यान केन्द्रित करना होगा । अब निजी सोच से, संकुचितता से काम नहीं चलेगा। आखिर हर देश ने अपनी ओर से स्वर्ग के सृजन का और पृथ्वी के विस्फोट और प्रलय का इंतज़ाम कर लिया है। अब आवश्यकता मन पर बुद्धि के अंकुश की है। अब दुनिया इतना विकास कर चुकी है कि मनोशास्त्र कोई अर्थ नहीं रख पा रहे हैं। अब हमें उच्च मानसिक ऊर्जा एवं क्षमता की खोज़ करनी होगी । मनुष्य को अपने साधारण विचार और साधारण मन से ऊपर उठकर असाधारण विचार और असाधारण मन की तलाश करनी होगी। जितनी आवश्यकता आज विज्ञान, कला और सुख Jain Education International ध्यान और विश्व का भविष्य / ९९ www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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