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पर न हो, वरन् बोध के तल पर हो। अगर यह सब बोध के तल पर है तो समझो तुम बुद्धत्व के करीब हो।
हम प्रतिदिन कायोत्सर्ग-विधि से गुजरें। कायोत्सर्ग मृत्यु-बोध की प्रक्रिया से गुजरने की कला है। देह-भाव और देह-राग को छोड़ते हुए विदेहानुभूति के लिए कायोत्सर्ग की प्रक्रिया अपने आप में एक विशिष्ट प्रयोग है। प्रक्रिया के गुजरने के लिए लेट कर सर्वप्रथम धीरे-धीरे श्वास लेते हुए पूरे शरीर में कसावट दें। श्वास को रोकते हुए संपूर्ण ऊर्जा के साथ समस्त मांसपेशियों को नाभि की ओर दो क्षण के लिए खिंचाव दें और तत्क्षण श्वास छोड़ते हुए शरीर ढीला छोड़ दें। यह प्रक्रिया हम कुल तीन बार करें। ___अब शरीर के प्रत्येक अंग को मानसिक रूप से देखते हुए एक-एक अंग को शिथिल होने का सुझाव दें। शरीर को भीतर-ही-भीतर सविस्तार देखें और हर अंग को शिथिल सुषुप्त हो जाने दें। हमारे पास आत्म-सजगता की ज्योति पूरी तरह बरकरार रहे, हम शरीर के तादात्म्य को तोड़ें और निर्भार हुए ऐसा अनुभव करें। ___कायोत्सर्ग-विधि के दूसरे चरण में हम ऐसी कल्पना करें मानो हम ज़मीन पर नहीं वरन किसी चिता पर सोये हैं। हम अपनी अन्तर-सजगता की जलती लौ से उस चिता को आग लगा दें। चिता जलेगी। चिता के साथ हम काया को भी जलता हए देखें। अपनी चेतना को काया से बाहर लाकर उस सारी स्थिति को देखें। चिता जब बुझने लगे, हम पुनः शरीर में लौट आयें और अपने शरीर में रहे हुए अस्तित्व से एकाकार हो जाएँ जब सहज स्थिति आये, खड़े हो जाएँ। हम पायेंगे कि हमारा एक नया जन्म हुआ है। हमारी चेतना पूर्वापेक्षा अधिक निर्मल, शांत और ऊर्जस्वित हुई है। हम स्वयं में मुक्ति का प्रकाश पाएँगे। मुक्ति का आनंद निहारेंगे। हमें पूर्ण स्वस्थता का अनुभव होगा। हमें अपना जीवन किसी तीर्थ-यात्रा की तरह मंगलदायी, स्वस्तिकर और सच्चिदानन्द-दशा का अनूठा सुख प्रदान करेगा।
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