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होम रहा है, पीछे केवल शरीर की तस्वीर ही बचेगी।
सुनने वालो सुनो ध्यान से सारे आज गरीब-अमीर । सबकी ही तस्वीर रहे गी
नहीं रहेगा सदा शरीर ॥ किसी की मृत्यु हमारे शरीर के लिए एक अवसर है अपने जीवन और अपनी मृत्यु को समझने के लिए। मृत्यु तो आखिर सबकी ही होनी है। हर कोई मौत की कगार पर खड़ा है। मृत्यु कोई आकस्मिक घटित नहीं होती। वह तो पल-पल घटित हो रही है। शिवलिंग पर रखा कलश बूंद-बूंद रिस रहा है। अगर अपनी इस साँस-धारा पर ध्यान दो तो साफसाफ लगेगा कि आती हुई साँस जीवन है, जाती हुई साँस मृत्यु है। साँस लेना जीवन है, साँस छोड़ना मृत्यु है। जब बच्चा जन्म लेता है तो वह सबसे पहले साँस लेता है। जब आदमी मरता है, तो आखिरी बार साँस छोड़ता है। साँस के लेने और छोड़ने में ही जीवन और मृत्यु के संगीत का लय है। मृत्यु अंतिम साँस का लेना नहीं है, वरन् साँस का छूटना है। मृत्यु यानी साँस का वह आखिरी बार छूटना जिसके बाद साँस फिर ली न जा सके। जिसकी श्वासों में मधुरता है, एक संतुलन और लयात्मकता है वह न केवल अपने जीवन और मृत्यु के प्रति सजग है, वरन् उसके जीवन में माधुर्य और आनन्द की सुवास भी है, प्रकाश भी है। ___जहाँ प्रकाश है वहाँ अंधकार प्रवेश भी कैसे कर पायेगा? जिस घर में अंधकार और सूनापन है चोर वहीं तो घुसेगा। हम जीवन के प्रति आनंदित रहें, जीवन हमें आनंदित रखेगा। हम शाश्वत जीवन का बोध रखें जीवन हमें शाश्वत बोधि-लाभ दिये रखेगा।
बुद्ध ने तो कहा था, 'तुम मेरे पास संन्यास लेने से पहले तीन महीने श्मशान में ध्यान कर आओ। जलती हुई चिता का ध्यान कर आओ, ताकि तुम्हें देह का आखिरी रूप समझ में आ जाये, आखिर मरणधर्मा देह से कैसा मोह ? देह को हकीकत में मरणधर्मा जान लो तो जीवन में आत्ममुक्ति की क्रान्ति घटित हो जाये। यह सब कोई विचार या बुद्धि के तल
मुक्ति का पाठ : मृत्यु-बोध / ९१ ..
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