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________________ ध्यान वही, जो घटे जीवन में ६९ वह खाद्य कतई मत लो, जो तुम्हारे होश को, तुम्हारी अप्रमत्तता को बाधित करे । शराब तो बहुत दूर की बात है, तुम चाय, कॉफी और धूम्रपान से भी बचकर रहो । ध्यान के लिए जितना जरूरी यह है कि तुम्हारा मन स्वस्थ और निर्मल हो, उतना ही जरूरी यह भी है कि तुम्हारा मुँह और पेट भी उतना ही स्वस्थ और निर्मल हो। और अपनी ओर से जो चौथी और अन्तिम बात जो कहना चाहता हूँ वह यह है कि तुम अपनी हर स्थिति का स्वागत करना । तुम यह मानकर चलो कि परिस्थितियाँ विपरीत आएँगी, तुम्हें उन परिस्थितियों के सामने कैसे रूबरू होना है, इसकी मानसिकता तुम अभी से तैयार रखो । लोग तो बुरा-भला कहेंगे, लोग तो तुम पर कीचड़ उछालेंगे, तुम्हें कीचड़ के बदले में कीचड़ ही उछालते रहना है, या तुम कीचड़ के बदले में कोई फूलों का गुलदस्ता तैयार कर चुके हो । तुम कमल हो जाओ, कीचड़ अपने आप निस्तेज हो जाएगा । तुम सागर हो जाओ, अंगारे अपने आप बुझ जाएँगे। तुम परिस्थितियों से पलायन मत करो । तुम परिस्थितियों के प्रति प्रेम से पेश आओ। तुम अपने प्रेम से, सरलता से, माधुर्य से परिस्थिति को बदल सको, तो बहुत श्रेष्ठ, वरना उस विपरीत परिस्थिति को सह जाना, पी जाना । आखिर विष पी जाने के कारण ही महेश शंकर कहलाए । मीरा विष पीकर ही कृष्ण की बावरी हई थी। हमें भले ही छिदना लगे, पर छिद कर ही कोई चीज मोती कहलाती है और कटकर ही कोई चीज हीरा। अपनी प्रिय कहानियों में एक हैं भगवान बुद्ध किसी गाँव में प्रवास कर रहे थे। बुद्ध जैसे तेजस्वी और यशस्वी व्यक्ति की यशोगाथा से पूरा गाँव अभिमंडित था। स्वाभाविक है जहाँ अच्छे लोग होते हैं, वहाँ बुरे लोग भी होते हैं। जैसे अंग्रेजी दवा के फायदे भी होते हैं, तो इन्फेक्शन भी । बुरे लोग अपनी बुराई पर इस कदर उतर आए कि बुद्ध का यश धूमिल हो गया और बुद्ध की अपकीर्ति होने लगी। बुद्ध की बदनामी इस कदर फैल गई कि गाँव में बुद्ध का रहना दूभर हो गया। बुद्ध के शिष्य गाँव में आहार के लिए जाते, तो बुद्ध के प्रति वही सब टीका-टिप्पणी सुनने को मिलती । आखिर आनन्द से रहा न गया। सब कुछ सीमा के बाहर हो चला था। आनन्द ने बुद्ध से अनुरोध किया, प्रभु, गाँव में जो कुछ आपके लिए कहा जा रहा है, या तो आप उसका प्रतिकार करें, या फिर गाँव छोड़कर कहीं और निकल चलें। बुद्ध ने कहा, वत्स ! गाँव से चले जाने से अंधेरों को और बल मिलेगा। और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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