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ध्यान : साधना और सिद्धि
अगर दूसरे गाँव भी चले गए, तो यह कौन-सी गारंटी है कि वहाँ बुरे लोग नहीं मिलेंगे !
आनन्द ने कहा, भन्ते ! दूसरे गाँव में भी ऐसा ही हुआ, तो और किसी गाँव में चल पड़ेंगे ।
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बुद्ध ने कहा, उस तीसरे गाँव में भी ऐसा ही हुआ तो ?
आनन्द ने कहा, भन्ते, चौथे गाँव, पाँचवें गाँव चल पड़ेंगे ।
बुद्ध बोले, वत्स ! ऐसे हम कितने गाँव बदलेंगे ।
आनन्द ने कहा, भगवन्त ! गाँवों की कमी थोड़े ही है । एक नहीं तो
दूसरा
सही ।
बुद्ध ने मुस्कुराकर कहा, आनन्द ! गाँवों के बदलने से लोग नहीं बदलते । इस गाँव को अगर तुम इसलिए छोड़ रहे हो कि यहाँ बुरे लोग रहते हैं, तो ध्यान रखो, तुम जिस भी गाँव में जाओगे, वहाँ भी ऐसी ही प्रकृति के लोग मिल जाएँगे। तुम गाँवों को बदलना छोड़ो । आखिर, हम आज जिस गाँव में हैं, वहाँ भी अच्छे लोग हैं। तुम अपने मन में उनके प्रति शांति और समता का, दया और क्षमा का भाव लाओ। तुम किसी की गाली को ग्रहण मत करो। तुम्हें गाली, गाली रूप में नहीं लगेगी । तुम गीत और गाली—दोनों से उपरत रहो, निरपेक्ष रहो । तुम स्वतः आकाश की तरह मुक्त रह सकोगे बुद्ध के साथ रहकर तुम पलायन नहीं, जीवन को और जगत को जीना सीखो। यह सब तो ध्यान और निर्वाण के कसौटी-सूत्र हैं ।
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हम अन्तर के गवाक्ष में झाँकें, वहाँ की मनःस्थिति को स्वस्थ करें और जगत की ओर अपनी दृष्टि खोल दें, अपने चिन्मय चरण बढ़ा दें ।
प्रमोद-भाव से आप सबको मेरे नमस्कार ।
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