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ध्यान ः साधना और सिद्धि
छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित-उत्तेजित या आक्रोशित होने की बजाय जीवन में धैर्य और माधुर्य के नीलकमल खिलने दें। विशेषकर तब जब किसी से हमें अपमान या पीड़ा मिल रही है। हम किसी के प्रति बदले की भावना न रखें । हम विद्वेषी के प्रति भी, ध्यान में उतरने से पहले भी और बाद में भी, मैत्री-भाव का संचार करें । अगर ऐसा होगा तो एक तो उसके विद्वेष के भाव स्वतः कम होते जाएँगे और दूसरा यह कि उसके वैर-विरोध की पीड़ा हमें नहीं सालेगी। ईसा को जिसने सलीब दिया था, वह जानता था कि ऐसा करके वह ईसा को मृत्यु नहीं, वरन् प्रेम, धैर्य और माधुर्य का अमृत दे रहा है । कभी ध्यान दिया कि उस पीड़ा में से भी कैसे धैर्य के कमल खिले थे, शान्ति का निर्झर बहा था, माधुर्य का मुक्त गगन उमड़ा था !
मैं तो कहूँगा जीवन में तुम हर घटना के प्रति, हर कृत्य के प्रति बड़े धैर्य और आत्मविश्वास से पेश आना । व्यग्र या जल्दबाज होने का दुर्गुण अपने में पोषित मत होने देना । तुम थोड़ा प्रकृति पर भी, उसकी व्यवस्थाओं पर भी, प्रभु के प्रबन्धों पर भी विश्वास करना।
मुझसे कभी मेरे एक करीबी साधक ने कहा कि वह मुक्ति पाने के लिए व्यग्र है । मैंने उसे इतना ही कहा, यह अनन्त का मार्ग है, और अनन्त को पाने के लिए वही व्यक्ति कसौटी पर खरा उतर सकता है, जिसके हृदय में अनन्त धैर्य है। आखिर, किसी को सत्य को जन्म देना है, तो उसे प्रसूति के अन्तिम क्षण तक धैर्य रखना होगा । जल्दबाजी करनी चाही, परिणाम को तत्क्षण पाना चाहा, तो जच्चा-बच्चा दोनों को खतरा है। आदमी फिसल जाएगा।
तुम बीज बोओ और धीरज धरो । ध्यान का बीज, साक्षित्व का बीज, बोध-दशा का बीज बोओ। बीज स्वतः एक दिन फूटेगा । फोड़ने से बीज नहीं फूटता । वह तो जब भी फूटेगा, आकस्मिक ही फूटेगा। अगर तुमने यह सोचा कि क्या बात है बीज फूटा क्यों नहीं और यह सोचकर जमीन को खोदा तो बीज टूट जाएगा, फूट नहीं पाएगा। बीज के फटने की भी आखिर प्रक्रिया है, उसके लिए भी समय चाहिए। अधीर होने से काम नहीं चलेगा। धीरज चाहिए, परिणाम के लिए धीरज । तुम बस धैर्यपूर्वक भीतर के आकाश को देखते जाओ, एक दिन तुम अवश्य ही आकाश हो जाओगे, मुक्त और विराट हो जाओगे।
तीसरा संकेत अपनी ओर से यह देना चाहूँगा कि ऐसे भोजन, ऐसे पदार्थ, ऐसी परिस्थिति से परहेज रखो, जो मादक हो, उत्तेजक हो । तुम वह भोजन या वह पेय या
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