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________________ मन को मिले सार्थक दिशा योगासन से शरीर की स्थिति स्वस्थ और निर्मल होती है, प्राणायाम से श्वास और प्राणतत्त्व की, और ध्यान से मन-बुद्धि और आत्मा की । यदि आपको योगासन, प्राणायाम और ध्यान की समुचित विधि आती हो, तो श्रेष्ठ, अन्यथा सीख लें और यदि ऐसी सुविधा न मिले, तो एक प्रयोग कर लें – तीन मिनट का जॉगिग कर लें, योगासन की क्रियान्विति हो जाएगी; पाँच मिनट तक दीर्घ श्वास-प्रश्वास ग्रहण कर लें, प्राणायाम की आपूर्ति हो जाएगी; श्वास-धारा पर चित्त को स्थिर करते हुए अपने आप में विश्राम कर लें, ध्यान की सहज परिणति सामने आ जाएगी । हम स्वयं को बहुत शान्त, पर आनन्दपूरित, स्वस्थ और तनावमुक्त पाएँगे । ३७ पाँचवी बात है हम स्वाध्याय - सत्संग अवश्य करें। इससे जहाँ बुद्धि-बल प्रखर होगा, वहीं मन ऊल-जलूल विचारों में भटकने से बच सकेगा। मन को मनन के लिए ज्ञानमूलक दिशा मिलेगी। जो व्यक्ति प्रतिदिन आधे घंटा भी नियमित स्वाध्याय करता है, वह अपने अपने मन का मार्गदर्शन करने में स्वयं समर्थ होता है । छठी बात, हमारी ओर से यह सजगता हर समय बनी रहे कि हमारी ओर से सबके साथ सम्बन्ध, व्यवहार और सोच संतुलित, संयमित और माधुर्यपूर्ण हों । हम स्वयं को विधायक पहलुओं से जोड़ें और हमेशा रचनात्मक तथा सकारात्मक सोच तथा कार्य से सम्बद्ध करें। हम अगर एक सोच को ही सकारात्मक बनाने में समर्थ हो गए, तो अपने आप हमारे जीवन की दिशा और दशा सुधर जाएगी । और जो अन्तिम सूत्र देना चाहता हूँ वह यह कि हम सदा मैत्री- प्रमोद और आनन्द-भाव में स्थित रहें, हम कर्त्ताभाव में नहीं साक्षिभाव में रहें । इस बोध के साथ कि मैं चैतन्य और आत्मविश्वास का स्वामी हूँ। अपने भीतर उठने वाली वृत्ति या विचार धारा अथवा किसी भी घटना से प्रभावित होने की बजाय उसका द्रष्टा भर रहना साधक का साक्षीभाव है । हम अपनी हर वृत्ति, विकार और विचार के प्रति सजग रहें। जीवन को बड़े होश और बोध के साथ जिएँ । अपने पर विश्वास रखना और ईश्वर के प्रति निष्ठा – मनोनिग्रह का मूलमंत्र है । हम अपने मन को पहचानें, उसकी अन्तरदशा को बदलें और मन से मुक्त हो जाएँ । मन की धारा कैसे बदल जाती है, वह किस तरीके से मुक्ति का मार्ग बन जाता है, इसके कई उदाहरण हैं । मुझे एक पात्र बहुत प्रिय रहा है। यूं तो वह हजारों वर्ष पूर्व हो चुका है, लेकिन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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