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________________ २ ध्यानः साधना और सिद्धि हूँ कि यदि मन की स्थिति और प्रकृति को समझ लें, तो मन जीवन के लिए स्वयं के अन्तर्जगत् का सबसे बड़ा वरदान हो जाए । अर्जुन ही क्या, हर कोई यह कहेगा कि मन को वश में करना उतना ही कठिन है, जितना कि वायु को वश में करना, पर अभ्यास, दृढ़ इच्छाशक्ति और रचनात्मक चिन्तन तथा सकारात्मक व्यवहार के द्वारा मन की स्थिति को बदला जा सकता है। . जिसका मन शांत और नियंत्रित नहीं है, वह मानसिक संत्रासों और रोगों से . घिरा रहेगा। मानसिक रोग उसके शारीरिक रोगों का भी कारण बनेगा। जिसने एक मन को स्वस्थ कर लिया, वह स्वास्थ्य-लाभ की नब्बे फीसदी यात्रा पूरी कर चुका । मन ही बीमार है, तो शरीर की कितनी भी देखभाल कर लो, आदमी अस्वस्थ, संत्रस्त और उदास ही रहेगा। मनुष्य का मन बीमार है । मन पेचिदियों में, उलटबाँसियों में उलझा है । हम समझें मन को। मन का पहला रूप है विक्षिप्तता। विक्षिप्तता यानि पागलपन। अधिकांशतः सभी का मन विक्षिप्त और पागल है । यह न समझें कि जो पागलखाने में हैं, वही पागल हैं । मैं जिस पागलपन की बात कर रहा हूँ वह अत्यन्त गहरे और भिन्न अर्थ में है। क्योंकि मन का पागलपन बहुत विचित्र है । मन की अनियंत्रित अवस्था ही उसकी विक्षिप्तता है । विक्षिप्तता का अर्थ है जहाँ मन में उठने वाले विचारों और विकल्पों में कोई सम्यक् संतुलन नहीं; पूर्वापर विरोध है, एक दूसरे के प्रति विरोधाभास है । आपने देखा होगा कभी आपके मन में क्रोध के शोले उठने लगते हैं और थोड़ी देर बाद प्रेम की रसधार भी बहने लगती है । एक के प्रति क्रोध और उसी क्षण में दूसरे के लिए क्षमा, यह चित्त की विरोधी प्रकृति है, यह विक्षिप्तता का नमूना है। हमारा युग भी इतना उन्मादी है कि कहीं पर शांति के इन्तजाम दिखाई ही नहीं देते । मंदिरों और गिरजाघरों में कितने घंटे बजते हैं, लेकिन चेतना किसी की नहीं जगती । शांति के उपायों के लिए बेतहाशा शस्त्र-निर्माण होता है, पर क्या कभी अस्त्र-शस्त्रों से शांति आई है ? सुरक्षा के जितने इन्तजाम हो रहे हैं, मनुष्य उतना ही अधिक असुरक्षित हुआ है । मनुष्य बात करेगा शांति की और कार्य होंगे अशांति के । विश्व के समृद्ध राष्ट्र निरस्त्रीकरण का नारा गुंजाते हैं और अणुबम और हाइड्रोजन बम भी बनाते हैं। शस्त्रों का जितना निर्माण इन समृद्ध राष्ट्रों में होता है, उतना अन्य कहीं नहीं। ये राष्ट अपनी सैन्यशक्ति पर जितना खर्च करते हैं, कुल उतना तो हमारा राष्ट्रीय बजट भी नहीं होता। और, ये ही राष्ट्र सबसे अधिक शांति और निरस्त्रीकरण का ढिंढोरा पीटते हैं। क्यों? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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