SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन को मिले सार्थक दिशा ३१ जीवन के विज्ञान को समझें और उसके अन्तर-स्वरूप तक पहुँचें । मन, जिसमें शैतान का वासा है, उससे मुक्त होकर संसार में जिएं । अन्तर-जगत् से शैतान का उन्मूलन हो, भगवान का जागरण हो। ____ ध्यान रखें, ध्यान हमें संसार से विमुख नहीं करता । संसार में कैसे जिएँ, इसका गुर देता है । आप जहाँ हैं, जैसे हैं, ध्यान में स्थिर हो लें । पांच मिनट की डूबकी भी हृदय को तरोताजा कर देगी। हम अपनी बोझिलता को शिथिल करें और स्थितप्रज्ञ हो लें। ध्यान रखें, ध्यान जंगल की प्रेरणा नहीं है । जंगलीपन को मिटाने की प्रेरणा है । ध्यान अंतर-प्रेरणा है। ध्यान धर्म का नारा नहीं है । ध्यान अंतर-ध्वनि की श्रुति है । ध्यान संसार से भागना नहीं है। ध्यान की गहराई में डूबने पर संसार का दलदल स्वयं ही छूटता जाता है और दलदल में छिपा बीज कमल की तरह प्रगट हो जाता है । व्यक्ति रहता तो तब भी संसार में ही है, लेकिन कोई बीज कमल बन गया, बीज में से बरगद निकल आया। तब भौतिक और भगवान का, दूध और पानी का फर्क स्पष्ट हो जाएगा। वह विदेह की आँख, वह सम्यक्त्व की दृष्टि हमारे साथ रहेगी । ध्यान संसार में रहकर संसार से अछूते रहने की कला है। सबसे प्रेम होगा, लेकिन अन्तरघट में निर्लिप्तता बनी रहेगी । ध्यान वह पगडंडी देगा जिसमें हम सबके बीच होंगे, भीड़ में खड़े रहेंगे, लेकिन एकत्व का बोध सतत जाग्रत रहेगा । यूं तो शरीर रात में विश्राम कर लेता है, लेकिन मन तब भी चंचल ही रहता है । और ध्यान मन से उपरत होना सिखाता है । मन की काल्पनिक दौड़ और भटकाव से ध्यान मुक्ति दिलाता है। मन दिन में संसार और रात्रि में सपने देखता है । यह विश्राम कर ही नहीं रहा। मन ने अगर विश्राम पाया, तो जीवन का अध्यात्म उपलब्ध हो गया। मन के मौन हो जाने पर दिव्यत्व हमारे साथ होगा। तब कहीं बाहर के देवलोक में नहीं जाना होगा, यह संसार और जीवन ही देवलोक हो जाएगा। वाणी, विचार, मननशीलता, इनका जब उपयोग करना होगा, तब करेगा, अन्यथा सब कुछ स्वयं के नियंत्रण में होगा। मन को हम ध्यान की दिशा दें, ध्यान का साहचर्य दें। ध्यान यानी वह मार्ग, जिससे मन को दिशा मिल सके, दिशा दे सकें । ध्यान का कोई आग्रह नहीं है । यदि और भी कोई प्रयोग हो, और भी कोई मार्ग हो, वह अपना सकते हैं। जिससे मन का, चित्त का निर्मलीकरण हो, शमन और शोधन हो, वह कोई भी मार्ग अपनाया जा सकता है । मार्ग वही सार्थक है, जो मंजिल दे, परिणाम दे । राख पर की गई लीपापोती न हो जाए। मैं मन को जीवन का अत्यन्त गुह्यतत्त्व मानता हूँ और यह भली भांति जानता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy