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________________ एक डुबकी अपने भीतर मेरे प्रिय आत्मन्, कुछ पुरानी घटना है : एक यात्री-जहाज सुदूर समुद्र में डूब गया। अधिकांश यात्री समुद्र में समा गए, लेकिन एक व्यक्ति जैसे-तैसे लकड़ी के पाट का सहारा ले, डूबते-उतराते तट से जा लगा। जिस तट पर वह पहँचा, वह निर्जन, किंतु हरा-भरा टाप था। वह व्यक्ति उस निर्जनता में रहने को विवश हो गया। प्राकृतिक खाद्य भरपूर थे। घूमघामकर वह कन्दमूल इकट्ठे कर लेता और पेट भर लेता । उस निर्जन टापू में रहते हुए उसे वर्षों बीत गए । उसे इन्सानी दुनिया की याद भी आती, लेकिन वापस आने का कोई उपाय न था । इस दरम्यान उस आदमी की बहुत खोज की गई, क्योंकि शेष यात्रियों का या तो पता चल गया था या मृत देह मिल गई थी। केवल वही था जिसका अता-पता न था। दस वर्षों के बाद पुनः उसकी खोज की गई। एक हेलीकॉप्टर उस टापू पर मंडराने लगा और उसमें बैठे हुए लोगों ने देखा कि यह तो वही व्यक्ति है जिसकी खोज में वे भटक रहे थे । हेलीकॉप्टर नीचे उतरा, लोग बाहर आए। वे उसे ले जाने को उत्सुक हो गए। सौहार्दपूर्ण मिलन हुआ। बाहर की दुनिया के आए हुए लोगों को उस व्यक्ति ने फल व फलों का रस पेश किया। वे लोग नाश्ता कर ही रहे थे कि निर्जन टापू पर रहने वाले व्यक्ति की नजर एक अखबार पर पड़ी। यह अखबार वे अपने साथ लाए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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