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उड़िये पंख पसार
मृत्यु के समय कितना नैराश्य ! टूट जाता है आदमी, मरने से नहीं, मृत्यु के अहसास हो जाने भर से । मृत्यु की मंजिल पर मुस्कान उसके होठों पर रहती है जो जीवन से संतुष्ट रहता है, आन्तरिक मौन और आनन्द-लाभ का संवाहक रहता है।
तुम निश्चित रहो । हर हाल मस्त ! तुम्हें किसी की चिंता करने की जरूरत नहीं है । जिसने तुम्हे संसार में भेजा है वह सबकी चिंता कर रहा है । उसने पहले व्यवस्था जुटाई है तब संसार में भेजा है । तुम केवल अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करो क्योंकि तुम माध्यम हो जिसके जरिए संसार का विस्तार हो रहा है। तुम केवल सहयोगी हो, सर्वेसर्वा नहीं; फिर गुमान किस बात का । अमीरों को लुढ़कते और गरीबों को चढ़ते कितना समय लगता है । पता ही नहीं चल पाता कि कब किसका पहिया ऊपर गया और कब नीचे आया। परमात्मा सबको व्यवस्था देता है। असली व्यासपीठ पर तो वही बैठा है । सबके बर्तन उसी की चाक पर बनते हैं। फिर हम क्यों उलझे रहें । हमें तो ऐसा जीवन जीना चाहिये कि अन्तर्मन में न किसी तरह का भार हो, न कहीं कोई बंधन हो, न कोई बेड़ी हो । तुम तो पंछी बनो उन्मुक्त आकाश के । पंख पसारो और विहार करो । यह ध्यान का मार्ग हमें उन्मुक्त आकाश देगा। हमारे बोझ और बंधनों की बेड़ियों को काट कर शांति और स्वतंत्रता का दीप जलाएगा, जिसकी ज्योति में हम आनन्द के साथ जीने की प्रेरणा पा सकेंगे। ध्यान हममें जगाएगा ऐसा जागरण कि हम देख सकेंगे अपने होने को, अपनी सहजता को । अपनी पूर्णता को।
आज तक दुनिया में जागकर कोई क्रोध नहीं कर पाया है। जाग भी हो और क्रोध भी; ऐसा सम्भव नहीं है । या तो जागरण रहेगा या क्रोध । अगर अन्तर्मन और अन्तर्वृत्ति के प्रति सजगता है, तो क्रोध जन्म ही न ले पाएगा। क्रोध पैदा तब होगा, जब मन में किसी बात को लेकर कोई प्रतिक्रिया उठेगी । जो शान्त हो चुका है, मौन हो चुका है जिसका मन, उसे प्रतिक्रिया क्यों कर उठेगी । वह क्रोधित क्यों होगा। वह शान्त था, शान्त रहेगा। निर्मल और अविकृत रहेगा।
ऐसा हुआ, बुद्ध किसी गाँव से गुजरते थे। वहाँ के लोग बुद्ध के प्रति बहुत क्रोधित थे । वे इकट्ठे हुए और लगे देने बुद्ध को गालियाँ । थोड़ी देर बाद बुद्ध ने कहा, 'मित्रों, अगर तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो मैं जाऊँ, मुझे दूसरे गाँव जल्दी पहुँचना है।' 'बात, कैसी बात ! हम तो तुम्हें गालियाँ दे रहे हैं। क्या इतनी सीधी-सी बात तुम्हें समझ में नहीं आती'— भीड़ में से कोई बोला । बुद्ध ने कहा 'तुम गालियाँ दे रहे हो, यह तो मुझे भी समझ में आ रहा है, लेकिन मैंने गालियाँ लेना बंद कर दिया । और जब तक मैं
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