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________________ ८ ध्यान : साधना और सिद्धि न लूँ तुम्हारे देने से क्या होगा । जब से जगा हूँ, गलत चीजों को लेना बंद कर दिया है । होश से भरा हुआ आदमी गाली नहीं ले सकता । अब मैं जाऊँ ? वे लोग बहुत हैरान हुए। जाते समय बुद्ध ने कहा- 'एक बात और बताऊँ पिछले गाँव में लोग मिठाइयाँ लेकर आए थे। मैंने कहा, पेट भरा है । यह भी इसीलिए कह सका कि जागा हुआ था । जागकर देखता रहता हूँ तो गलती करना बहुत मुश्किल हो जाता है । वे लोग मिठाइयाँ वापस ले गए । अब आप बताइये उन्होंने मिठाई का क्या किया होगा ।’‘अरे घर जाकर बाँट दी होंगी' भीड़ में से एक बोला । 'मुझे यही चिंता हो रही है, तुम सब पर बहुत दया आ रही है, तुम अब इन गालियों का क्या करोगे । मैं लेता नहीं; ले भी नहीं सकता, चाहकर भी नहीं ले सकता । बहुत मुश्किल हो गई है यह बात, क्योंकि जागा हुआ व्यक्ति गलत को कैसे स्वीकार करे । ध्यान यह परिणाम देगा जागृति का, समदर्शिता का, जीवन को जीने का । संबुद्ध साधक की दृष्टि में न जीवन है, न मृत्यु है । यह तो जगत के पड़ाव हैं। इसलिए चाहे तनाव हो या घुटन, पीड़ा हो या दुख, भीड़ हो या तन्हाई, सांसारिक लिप्तता हो या अलिप्तता, ध्यान के पथिक इससे निस्पृह रहते हैं । उनके चित्त की मुस्कान निरंतर यथावत् रहती है। ध्यानस्थ मन ही मुक्ति का द्वार खोलता है । जाग्रत चेतना ही त्रुटियों का परिष्कार कर सकती है । I मैंने बचपन में एक प्रेरणा पाई थी । मैंने पढ़ा था कि भगवान कृष्ण ने शिशुपाल के लिए यह वचन दे रखा था कि, 'मैं शिशुपाल की निन्यानवें गलतियों को क्षमा कर दूँगा, लेकिन सौंवीं गलती होने पर दंड देने के लिए स्वतंत्र रहूँगा ।' उधर शिशुपाल गलतियों पर गलतियाँ करता चला गया, कृष्ण की उपेक्षा पर उपेक्षा होती रही । डगर-डगर पर कृष्ण अपमानित होते रहे । वह तो हाथ में अंगारे लेकर ही बैठा था, लेकिन शांत झील में सब कुछ समाता चला गया । कृष्ण की चेतावनी की उपेक्षा कर (शायद भूल ही गया हो) अपनी क्रोधाग्नि को भड़काए रखा। हम सभी जानते हैं अंत में उसका क्या हश्र हुआ । एक बात कहना चाहूँगा अगर कृष्ण निन्यानवें गलतियों को क्षमा कर सकते हैं, तो क्या हम नौ भी माफ नहीं कर सकते । थोड़ी-सी क्षमाशीलता तो हमारे पास भी होनी चाहिए । इतनी सहिष्णुता तो हमारे अंदर होनी ही चाहिए। किसी के दुर्व्यवहार के प्रति कुछ तो हमें करुणाशील होना ही चाहिए। देखने में यह आता है कि हम तो एक गलती भी माफ नहीं कर पाते । किसी ने कुछ कहा नहीं कि उत्तर तैयार रखा है । वास्तव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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