________________
ध्यानःसाधना और सिद्धि
मेरे देखे, जीवन से बढ़कर दुनिया में कोई शास्त्र नहीं है । इसके पृष्ठ तुम्हारे सामने खुले हुए हैं । जरा आँखें खोलो और इस शास्त्र को पढ़ो । प्रेरणा देने और प्रेरणा पाने के लिए जीवन से बढ़कर कोई दूसरा गुरु नहीं है। लेकिन हम भटक रहे हैं और खोज रहे हैं कि कोई गुरु मिल जाए। कभी-कभी नसीब से गुरु मिल भी जाता है तो उससे भी संसार की ही पूर्ति करा रहे हैं। अपनी कामनाओं के मकड़ जाल में उसे भी उलझाने की कोशिश करते हैं। अपने संसार में उसकी भी आहति देने के प्रयास में जट जाते हैं। हमारी मनुष्यता कहीं लुप्त हो जाती है और स्वार्थ-साधन की प्रवृत्ति गुरु के आसपास भी घेरा बनाने लगती है । हम उस पर भी अपनी मालकियत करने से बाज नहीं आते । हम कभी पूरे मनुष्य नहीं रह पाते हैं।
___ एक पशु पूरा पशु है, एक पक्षी पूर्ण पक्षी है, लेकिन क्या हम पूरे मनुष्य हैं ? यही प्रश्न विचारणीय है कि क्या मनुष्य पूरा मनुष्य है ? नहीं, वह अपने मनुष्यत्व का मालिक नहीं बन पा रहा है । स्वयं से मालकियत उठती जा रही है। वस्तुओं का मालिक भी नहीं रहा फिर स्वयं की मालकियत कहाँ । मनुष्य के दिन और रात अंधेरे में बीत रहे हैं । रात तो अंधेरे में है ही, दिन में भी उजाला नहीं है । मनुष्य के पास रोशनी का कौन-सा आयाम है ! वस्तुओं का संग्रह उसकी प्रवृत्ति है बिना यह जाने कि इसका क्या उपयोग हो रहा है । केवल जमा करना उसकी आदत बन गई है और जब मृत्यु की वेला नजदीक आती है तब वह विवश है यह देखने को कि उसके साथ कुछ नहीं जा रहा है । जीवनभर संग्रह किया, पर जाते समय मुट्ठी भर भी न ले जा सका। फिर संग्रह किसके लिए? क्या मिट्टी होने के लिए?
सिकंदर के जीवन की घटना है- जब सिकंदर मृत्यु शैय्या पर था, तो उसके आसपास सेना के अफसर खड़े हुए थे। वे अफसर जिन्होंने अपने सम्राट के विश्व-विजय अभियान में प्रमुख भूमिका निभाई थी। उनकी आँखें अश्रु से भरी हुई
थीं। सिकंदर प्रतिपल मृत्यु की ओर बढ़ रहा था और वे लाचार थे। विश्व का सम्राट कितना दयनीय लग रहा था। तभी सिकंदर ने आँखें खोली और कहा, 'मेरी एक अंतिम इच्छा है जिसे तुमलोग अवश्य पूरी करना। सभी अफसर चकित कि मृत्यु शैय्या पर पड़े सम्राट की क्या इच्छा हो सकती है । उन्होंने प्रश्नभरी निगाहों से सम्राट को देखा। सम्राट ने कहना जारी रखा, 'जब मेरी अर्थी उठे तो मेरे दोनों हाथ बाहर रखना ताकि दुनिया देख सके कि सम्राट होकर, सारी दुनिया का बादशाह होकर भी खाली हाथ जा रहा हूँ।'
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org