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________________ उड़िये पंख पसार आने लगे । साधक, तुम उस दृष्टि के स्वामी बनो कि सिवा उसके और कोई नजर ही न आए । नानक ने कहा था मेरे पाँव उस ओर कर दो, जिस ओर उसका निवास न हो। ___ सच में, हमारे उलझाव तभी तक हैं जब तक समझ नहीं मिल जाती । तुम्हारा पुत्र भी तभी तक तुम्हारे साथ है जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता है । पंख निकलने तक ही बच्चा चिड़िया के पास रहता है । पंख लगते ही वह कुलांचे भरने लगता है। इसके बाद भी अगर पुत्र माता-पिता के पास रह जाए तो बहुत सौभाग्य की बात है। लेकिन यह सौभाग्य बहुत कम लोगों को उपलब्ध है । और जब पंख निकलने पर उड़ना ही है तो किस दलदल में आँखें अटकी हुई हैं। हम देख रहे हैं इस नश्वर काया को, जो भी इस भूतल पर अवतरित हुआ फिर वह तीर्थंकर हों या पैगम्बर या अवतार सभी को यहाँ से विदा लेनी पड़ी। फिर हम किसके लिए और क्यों इतने जाल फैला रहे हैं। हमारे पूर्वजों ने भी यही किया, हम भी यही कर रहे हैं और आने वाली पीढ़ियाँ भी यही करती रहेंगी। आखिर क्यों? हमें इन सबसे हासिल क्या हो रहा है। सिर्फ यही कि हमारी मालकियत खोती जा रही है। हम माल तो बटोर रहे हैं, लेकिन मालिक गायब हो गया है । उस माल की कीमत ही क्या जिसका मालिक ही न बचे । जरा बताइए, हमारे हाथ में क्या है हमारी मनुष्यता या महज दुकानदारी? तुम अपने छोटे से संसार को कितना जियोगे । जीना है तो पूरे संसार को जियो, दायरों में सिमटकर क्या जीना । एक गधा तो नासमझ है, स्वयं के लिए सोच नहीं सकता इसलिए घर और घाट के बीच घूम रहा है, लेकिन तुम्हारे साथ कोई मजबूरी नहीं है। तुम तो सोच सकते हो कि अतीत में व्यतीत वर्षों से क्या पाया-क्या खोया । तुम तनिक देखो तो सही तुमने खोया ही खोया है, और जिसे पाना कहते हो वह तो खो ही जाने वाला है । क्या कुछ ऐसा पा सके जो तुम्हें तृप्ति दे गया या संतोष दे गया? नहीं, तुम्हें जो मिल रहा है तुम उसके पीछे दौड़ रहे हो । तुम अपनी कामनाओं के पीछे दौड़ रहे हो, लेकिन जितनी वह तुम्हें पास लगती है वहाँ पहुँचकर तुम पाते हो दूरी उतनी की उतनी है और तुम्हारी दौड़ जारी रहती है । बहुत दौड़ लिए । अब जरा रुककर भी देखो। देखो जिनके पीछे दौड़ रहे हो, वह बहुत क्षणिक है । इसके अलावा एक शाश्वत भी है, जिसे दौड़कर नहीं, ठहरकर पाया जाता है । अब यह दौड़ बंद करो और रुक कर देखो, सजग होकर देखो, अन्तर्दृष्टि से देखो । वह तुम्हारे बिल्कुल नजदीक है । कामना का क्षितिज कभी नहीं छू पाओगे, लेकिन उसका आकाश बिल्कुल करीब, तुम्हारे ही अंदर है। कृपया अपने आपको पढ़ो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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