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दिया जाए। आखिरकार अपनी चिंता का एक समाधान उसे सूझ ही गया। उसने अपने जैसी बहुत-सी मूर्तियाँ बना लीं। निन्यानवे मूर्तियाँ बनाकर वह ख़ुद भी उनके बीच जाकर खड़ा हो गया।
यमराज आए, तो चिंतन में पड़ गए। काफी दिमाग लगाया कि इन मूर्तियों के बीच असली मूर्तिकार कौन है ? लेकिन यमराज भी तो यमराज थे, मृत्यु के देवता। उन्होंने अपना खेल किया। वे बड़बड़ाने लगे, 'भाई मूर्तिकार, मूर्तियाँ तो आपने बहुत ही अच्छी बनाईं लेकिन एक कमी रख ही दी।' कोई भी कलाकार कितना भी विनम्र क्यों न हो, वह अपनी कलाकृति में कोई कमी बर्दाश्त नहीं कर सकता। वह भूल गया कि वह मृत्यु से बचने के लिए ही अपनी बनाई मूर्तियों के बीच छिपा हुआ है। वह तत्काल बाहर आया और यमराज से अपनी कलाकृति में रह गई कमी के बारे में पूछने लगा। बस यमराज ने उसकी बाँह पकड़ ली। तब मूर्तिकार को होश आया, अरे, ये तो यमराज ने मुझसे छल कर लिया।
दस साल अपनी मूर्तियाँ बनाने में लगा रहा। यदि उसने ये दस साल अपने कल्याण के लिए लगाए होते, तो आज यमराज से उसकी यूँ मुलाकात नहीं होती। वह खुशी-खुशी मृत्यु को गले लगा लेता। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया। आखिर मृत्यु से साक्षात्कार तो उसे करना ही पड़ा। मृत्यु तो तब भी आती लेकिन तब वह मृत्यु न होकर महोत्सव बन जाती।
इसलिए मृत्यु से घबराओ मत। निर्भय चेतना के स्वामी बनो। नचिकेता का यमराज से किया गया प्रश्न हम सभी के कल्याण के लिए है। यमराज के उत्तर से हम अपना कल्याण कर सकते हैं। प्रभु यही संदेश देते हैं कि हम मृत्यु से निर्भय हो जाएँ। जीवन को निर्भय होकर जीएँ। जीवन का अधिकतम उपयोग सार्थक कार्यों में करें। जीवन में यह तृष्णा न रह जाए कि अमुक काम नहीं कर पाए, अमुक काम की मन में इच्छा ही रह गई। भगत सिंह फाँसी के तख्ते पर हँसते-हँसते गए। हम भी मृत्यु को हँसते-हँसते स्वीकारेंगे, तो योगी कहलाएँगे। इसलिए अनासक्तिपूर्वक जीओ। सबके साथ रहो, हँसो-खेलो, पर चिपको मत। मुक्त होकर जीओ। पुरुषार्थ मृत्यु के लिए नहीं, मुक्ति के लिए करो। मरण हो, तो ऐसा हो जो पुनर्जन्म का इंतकाल कर दे। जीवन एक उत्सव है। इसे इस तरह जीओ कि मृत्यु महोत्सव बन जाए।
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