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________________ कहो तो मैं तुम्हें पृथ्वी का अधिपति बना देता हूँ। तुम्हें दीर्घ आयु प्रदान करता हूँ, बस तुम मृत्यु का रहस्य जानने की ज़िद मत करो। नचिकेता अड़ा रहा। कहने लगा, मैं न तो देव-देवांगना चाहता हूँ और न ही पृथ्वी का राज। मृत्यु के बारे में आपसे अधिक कौन बता सकता है ! इस प्रश्न का उत्तर अन्य कोई नहीं दे सकता। आप जानते हैं, इसलिए मुझे यह आत्म-ज्ञान प्रदान करें। आप अपना अनुभव मुझे बाँटें। दुनिया में दो तरह के ज्ञानी होते हैं - एक तो वे जिन्हें किताबों का ज्ञान होता है; दूसरे वे, जिन्हें अनुभव का ज्ञान होता है। किताबी ज्ञान तो पृथ्वी पर खूब मिल जाएगा, लेकिन ख़ुद भोगकर, अनुभव से पाया ज्ञान हर किसी के पास नहीं होता। आप मृत्यु के बारे में सबसे ज्यादा तजुर्बा रखते हैं, इसलिए मैं आपसे मृत्यु का रहस्य जानना चाहता हूँ। __ हे यमराज, आप मुझे बताएं कि इसमें क्या रहस्य है, कुछ लोग कहते हैं, मृत्यु के बाद जीवन रहता है; कुछ कहते हैं, नहीं रहता। इसका क्या रहस्य है? धरती वासियों को तो ये प्रेरणा ही नहीं मिलती कि वे मृत्यु का रहस्य जानना चाहें । वे तो मृत्यु का नाम सुनते ही डर जाते हैं । निर्भयतापूर्वक जीना है, तो मृत्यु से संवाद करो, मृत्यु को समझो। इंसान को कभी श्मशान भी जाना चाहिए। वहाँ उसे जीवन की नश्वरता का अहसास हो सकता है। जीवन की वास्तविकता क्या है, वहाँ जाकर पता चलेगी। भीतर की अग्नि बुझ गई, तो समझो मृत्यु हो गई। मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। मनुष्य को जीवन और मृत्यु के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। जैसा कल जीए, वैसा ही आज जीओ।बहुत कमा लिया।थोड़ा और कमा लोगे, तो ख़ास फ़र्क नहीं पड़ने वाला। ऐसा तो है नहीं कि ज्यादा पैसे कमा लोगे, तो दीन-दुखियों के लिए अस्पताल बनवाने वाले हो। गरीबों के लिए स्कूल बनवाने वाले हो। साठ साल जी लिए, दस साल और निकल जाएँगे, क्या फ़र्क पड़ जाएगा। वही घर से घाट और घाट से घर । इस दिनचर्या को बदल पाओ, तब तो कुछ और जीने का अर्थ भी होगा। इसलिए इतना कुछ कर जाओ कि मृत्यु जब भी आए, हम उसका स्वागत करें। मनुष्य के भीतर मृत्यु के भय की ग्रंथि बन जाया करती है। इस ग्रंथि को निकालना ज़रूरी है। एक साधक के लिए निर्भय चेतना का स्वामी बनना ज़रूरी है। जब तक निर्भयता नहीं आएगी, साधना में परिपक्वता नहीं आ पाएगी। एक मूर्तिकार था। बड़ी अच्छी मूर्तियाँ बनाता था। दूर-दूर तक उसका नाम था। एक दिन उसके मन में मरने का डर समा गया। उसने सोचा कि मृत्यु को धोखा कैसे 97 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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