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________________ इंसान जब शरीर छोड़कर जाता है, तो अपने साथ कुछ भी नहीं ले जाता। आज तक कोई कुछ लेकर नहीं जा सका। सब यहीं रह जाता है। ए.सी. तो छोडो, नीम की छाँव भी साथ नहीं ले जा सकता। तिजोरी तो यहीं छूटनी है, साथ में एक चिमटी आटा भी नहीं ले जा सकोगे। सब यहीं छूट जाने वाला है। साथ कुछ जाता है, तो जीवन में कमाया गया पाप-पुण्य जाता है। मरने के बाद पीछे कुछ नहीं रहता, केवल यश का शरीर पीछे छूटता है। इसलिए इतना ही कमाओ कि यश कहीं अपयश न बन जाए। इतना ही पैसा कमाओ कि वह पैसा तुम्हारा अनुयायी बना रहे, तुम्हारा मालिक न बन जाए। ज़िंदगी के गुलाम मत बनो, आज़ादी की खुली साँस लो। पैसा सुख देता है, लेकिन पैसा ही सब कुछ नहीं हुआ करता। एक दिन मरना है - इस बात को जो व्यक्ति याद रखेगा, वह फायदे में ही रहेगा। वह पैसे के साथ रह कर भी परमेश्वर से जुड़ा रहेगा। उसे पहला फायदा तो यह होगा कि आखिर तो एक दिन शरीर को छूट ही जाना है, इस बात का बोध रहेगा। भौतिक संसार के प्रति मूर्छा नहीं रहेगी। और कमाओ, और कमाओ की चाह समाप्त हो जाएगी। कहते हैं, संत एकनाथजी से किसी ने पूछा, आप इतने मस्त कैसे रह पाते हैं ? संत ने उसे कहा, तेरे सवाल का जवाब दूं, उससे पहले तू अपनी खैर मना। वह चौंका, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं महात्मन् ? एकनाथजी ने उसे बताया कि बीस दिन बाद उसकी मृत्यु होने वाली है। यह सुनते ही वह आदमी वहाँ से सरपट भागा। मशहूर था कि संत एकनाथ झूठ नहीं बोलते। वह आदमी वहाँ से सीधा अपने घर पहुंचा। पुत्र ने कहा, पिताजी दूकान चलें। वह बोला, नहीं बेटे, अब दूकान तुम ही संभालो। मेरा क्या है, मुझे तो ज़्यादा जीना नहीं है, इसलिए शेष समय भगवत् भजन में लगाऊँगा। उस दिन से उसकी दिनचर्या ही बदल जाती है। धर्म-कर्म, पूजा-पाठ में ही उसका सारा समय बीतने लगता है। वह सांसारिक कार्यों को पूरी तरह भूल जाता है। स्थिति यह हो जाती है कि वह संसार से विरत-सा हो जाता है। सोचने लगता है, अब मृत्यु आ भी जाए, तो चिंता नहीं। इतना सोचते ही मन शांत होने लगता है। ' बीस दिन बीत गए, मौत तो आई ही नहीं। वह हैरान हुआ।संत एकनाथ का कहा झूठ तो नहीं हो सकता। वह संत के पास गया। संत समझ गए कि वह क्या पूछना चाहता है। उन्होंने उसे समझाया, भले आदमी, मृत्यु क्या पूछ कर आती है। तुम मेरी मस्ती का राज़ जानना चाहते थे। राज़ यह है कि मैंने मृत्यु और जीवन के रहस्य को जान लिया है। यह शरीर तो एक दिन समाप्त होने ही वाला है। वह दिन कौन-सा होगा, यह 95 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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