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किसी के जन्म दिन पर लोग पूछते हैं, कौनसा जन्म दिन है ? जवाब मिलता है, पचासवाँ । आज पचास साल पूरे हो गए। इंसान कितना नादान है। पचास साल पूरे कहाँ हुए, जीवन में से पचास साल कम हो गए। इस लिहाज से जीवन पचास साल छोटा हो गया। क्या करें? जीवन के प्रति मोह नहीं छूटता।
राम के विवाह के पश्चात् जब विश्वामित्र जाने लगे, तो महाराज दशरथ ने उन्हें कुछ दिन और रुककर महलों में विश्राम करने को कहा। विश्वामित्र ने जवाब दिया, 'ज़्यादा रुकना ठीक नहीं है महाराज । मोह में पड़ना अच्छा नहीं है। एक बार ऐसा समय
आया था कि मेनका के मोह में पड़ गया था, सब तप चला गया। अब रुका, तो यह रुकना मोह का कारण बन जाएगा।'
समय रहते अपने दायित्वों को पूरा कर इस संसार रूपी जंजाल से निकल जाओ। मोह-माया का त्याग करो, ख़ुद को मुक्त करो संसार से। शेष जीवन को धन्य कर लो। जीवन एक अवसर ही तो है। जो इस अवसर को पहचान लेगा, अपना भला कर लेगा। नचिकेता ने यमराज के सामने गंभीर प्रश्न रखा कि हे गुरुदेव, मैं आपसे शिक्षित हुआ; इसलिए आप मेरे गुरु हुए। आपके शिष्य को तीसरे वर के रूप में बताएँ कि मृत्यु के बाद प्राण रहते हैं या नहीं? रहते हैं तो कहाँ ? आप मुझे मृत्यु का मर्म समझाएँ । मृत्यु के बाद क्या होता है?
नचिकेता ने ऐसा क्यों पूछा? मृत्यु के बारे में जानने से क्या होगा? इंसान को जीवन पूरे उत्साह और उमंग के साथ जीना चाहिए। पर एक बात सदैव याद रखनी चाहिए कि आखिर यह शरीर मरणधर्मा क्यों है ? उत्साह और उमंग के साथ जीते हुए हमें इतना अंधा भी नहीं हो जाना चाहिए कि हमें मृत्यु के आने का अहसास तक न रहे। हम मृत्यु को भूल ही बैठे।
आज कोई लाखों-करोड़ों कमा रहा है, तो कोई अरबों रुपए तिजोरी में डाल रहा है। रोजाना नई फैक्ट्री खोल रहा है। एक पाँव इधर, दूसरा उधर । घर तो भर रहा है, लेकिन घर-परिवार के सदस्यों के लिए समय ही नहीं है। यह काम, वह काम, काम ही काम। आँख खुलते ही काम शुरू होता है और नींद आने तक काम-ही-काम। अरे भाई, एक दिन तुझे मरना भी है। इतने जंजाल मं मत फँसो। कमाने में इतने व्यस्त मत होओ कि जीवन से शांति ही समाप्त हो जाए। हमारा जीवन केवल पैसा नहीं हो जाना चाहिए। शरीर भौतिक है, धन भौतिक है । भौतिक में हम इतने न उलझ जाएँ कि आत्मा और अध्यात्म याद ही न रह पाएँ।
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