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________________ मृत्यु बुरी नहीं लगती। मृत्यु तो जीवन का प्रसाद लगता है। मरते समय रोते वही हैं, जो जीवन में कुछ कर न पाए। अतृप्त आत्माएँ रोती हैं, तृप्त आत्माएँ मुक्त हो जाती हैं। नचिकेता मृत्यु से मृत्यु का रहस्य पूछ रहे हैं। आखिर मृत्यु है क्या, जो पलक झपकते ही सारी इहलीला का स्वरूप ही बदल देती है। हम एक मोमबत्ती जलाते हैं, उसकी बाती जलती है, ज्योति पैदा होती है, धुआँ भी उठता है, मोम पिघलता है; लेकिन एक पल ऐसा आता है जब सब समाप्त हो जाता है। प्रश्न उठता है, कहाँ गई ज्योति? कहाँ गया धुआँ? क्या था जो धुएँ के रूप में, ज्योति के रूप में व्याप्त था? आखिर मनुष्य पृथ्वी पर जन्म क्यों लेता है ? यहाँ रहने के दौरान ही मृत्यु क्यों घटित होती है । मृत्यु के बाद जीवन रहता है या समाप्त हो जाता है ? हमने जो संतान पैदा की, उसे पैदा करने में क्या सिर्फ हमारी ही भूमिका है या कोई और भी निमित्त है ? ये सब सवाल हैं जो जीवन के आध्यात्मिक चिंतन और मनन के दौरान हमारे मन में उपस्थित होते हैं । मृत्यु के उपरांत जीवन, एक ऐसा सवाल है, जिसके बारे में व्याख्या करने को बहुत सारे शास्त्र रचे गए हैं। दुनियाभर के तीर्थंकरों, पैगम्बरों, संतों ने इन सवालों का उत्तर जानने के लिए पूरा जन्म लगा दिया। खुद को लम्बी-लम्बी तपस्या में लीन कर लिया। पता नहीं किसने इनमें से कितने सवालों के उत्तर पाए, या नहीं पाए। मुझे लगता है, मृत्यु से बड़ा अध्यापक और कौन हो सकता है ? यह ऐसा अध्यापक है, जो न केवल मृत्यु, अपितु जीवन के बारे में भी कई रहस्य खोल सकता है। एक चित्रकार ने एक चित्र बनाया। उसमें चित्रकार ने एक युवक को दिखाया, जिसके दो पंख लगे थे। उस युवक का चेहरा उसके घने बालों से छिपा था। किसी ने चित्र की व्याख्या पूछी कि भला आदमी के पंख का क्या मतलब और उसका चेहरा क्यों ढका हुआ है ? चित्रकार ने बताया कि यह चित्र अवसर का है। अवसर जब आता है, पूछकर नहीं आता। इंसान समय पर अवसर को पहचान ले और उसका चेहरा देख ले, तो उसे उचित परिणाम मिल सकता है। जो ऐसा नहीं कर पाता, उसके आगे से ये अवसर पंखों की सहायता से उड़ जाता है। जो लोग अवसर का उपयोग कर लेते हैं, उन्हें वह कुछ दे जाता है और जो नहीं कर पाते. वे खाली हाथ रह जाते हैं । मनुष्य को मिला हुआ जीवन एक अवसर ही तो है। जीवन के रहस्यों को जानने के लिए है यह। आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के लिए है। अवसर का उपयोग करने वाले उड़ते जीवन को पकड़ लेते हैं । जो ऐसा नहीं करते, वे कबीर के दोहे की तरह जीवन जीते रहते हैं - चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय, दो पाटन विच आय के साबित बचा न कोय। हम सब मृत्यु की चक्की में पिसते हुए मृत्यु के निकट पहुँच जाया करते हैं। 93 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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