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________________ नचिकेता ने यमराज से तीसरे वर के रूप में यज्ञ की अग्नि का रहस्य जानना चाहा। यज्ञ में अग्नि की उपासना से स्वर्ग मिलता है। ऐसे आनन्दमयी लोक की प्राप्ति के लिए अग्नि की उपासना करें। मनुष्य अग्नि की उपासना के रूप में अपनी बुद्धि को, प्रतिभा को धारदार बनाए, सही तरीके से उपयोग करे तो वर्तमान को सफल बनाने के साथ ही स्वर्ग जितना आनन्द धरती पर ही पा सकता है। मृत्यु के बाद की चर्चा बाद में। अभी जीवन हमारे हाथ में है, तो जीवन की चर्चा करें। मृत्यु को भी समझेंगे, तो उसे भी जीवन के लिए ही समझेंगे। नचिकेता ने तीसरा वर माँगा। कठोपनिषद् के शब्द हैं, 'मरे हए व्यक्ति के विषय में जो यह संशय है, कोई तो यों कहते हैं, रहता है, और कोई कहते हैं, नहीं रहता। आपसे शिक्षित हुआ मैं इसे जान सकूँ, मेरे वरों में यह तीसरा वर है। हे गुरुदेव, आप बताएँ, इंसान मरने के बाद रहता है तो कहाँ और नहीं रहता तो क्यों? आखिर इसका रहस्य क्या है?' नचिकेता कहते हैं, 'मृत्यु और जीवन के बारे में जितना आप जानते हैं, उतना और कौन जान सकता है ? आत्म-तत्त्व, प्राण-तत्त्व को जानने वाले, जीवात्मा को समझने वाले आप ही हैं। आप संसार के सबसे बड़े गुरु हैं, जिन्हें जीवन का भी ज्ञान है और मृत्यु का भी।' यमराज संसार का सबसे बड़ा शिक्षक है, जो जीवन के प्रत्येक पल की, क्षणभंगुरता की हमें शिक्षा देता है । आती साँस जीवन है, जाती साँस मृत्यु है। एक क्षण जीवन है, तो एक क्षण मृत्यु है। कोई मृत्यु के जरिये जीवन को समझने की कोशिश तो करे। दुनिया का सबसे बड़ा वैज्ञानिक मृत्युदेव ही है। वह पलक झपकते ही किसी भी इंसान के प्राणों को निकाल लेता है। इंसान जीवन भर साधना करके भी इस सत्य को नहीं जान पाता, जिसे सिर्फ मृत्यु के देवता ही जान पाते हैं; इसलिए हे यमराज, आप ही महायोगी हैं । आप आते हैं, और पलक झपकते किसी के भी प्राण निकाल लेते हैं। नचिकेता पूछना चाहता है, आखिर आत्म-ज्ञान का रहस्य क्या है ? मृत्यु के उपरांत का जीवन क्या है ? हे गुरुदेव! जरा समझाइए। बड़ा गहरा प्रश्न है यह। मृत्यु से मृत्यु का रहस्य पूछा जा रहा है। नचिकेता के जरिये हम लोग मृत्यु से मुलाकात कर रहे हैं। यों तो लोग मृत्यु का नाम सुनते ही भयभीत हो जाते हैं। आप घबराएँ नहीं, नचिकेता को माध्यम बनाएँ और मृत्यु से मृत्यु को समझने की कोशिश करें। मृत्यु को समझना बड़ा दिलचस्प विषय है। जो वैज्ञानिक मृत्यु के रहस्य को समझना चाहते हैं, वे कठोपनिषद् पढ़ें। उन्हें कई रहस्यमय सूत्र मिल सकते हैं । मुझे भुगतना बुरा लगता है, 92 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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