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________________ बड़ा उदास हो गया । वह एक संत के पास गया। उसने अपनी व्यथा सुनाई, तो संत मुस्कुराए । वह बोला, 'मेरी समस्या पर आप मुस्कुरा रहे हैं, भगवंत, ये क्या है ?' संत ने उसे समझाया कि उसने केवल पेड़ काटने पर ही ध्यान दिया, हर रोज़ कुल्हाड़ी की धार को तेज नहीं किया । आखिर एक बार की धार कितने पेड़ काटती ? इंसान के साथ भी यही हो रहा है। वह बुद्धि का उपयोग तो कर रहा है, लेकिन उसे धार नहीं लगाता। यहीं पर उससे ग़लती है जाती है । बुद्धि को धार लगाते रहना चाहिए । भीतर की बुद्धि को और प्रखर बनाते रहना चाहिए । मृत्यु कब हमारा द्वार खटखटाएगी, इसकी चिंता मत करो। मृत्यु तो अनिवार्य है, एक दिन आ जाएगी। इससे कोई नहीं बच सका । ज़िंदगी को हमेशा धार लगाते रहना चाहिए | अग्नि क्या है, यह ब्रह्म - विद्या है और ब्रह्म - विद्या क्या है, यह ज्ञान - विद्या है, बुद्धि-विद्या है। जो लोग यज्ञ का आयोजन करते हैं, उन्हें केवल यज्ञ- -कुण्ड में आहुतियाँ ही नहीं देते रहना चाहिए। केवल नारियल ही अग्नि में नहीं डालते रहना चाहिए। यह काम भी ज़रूरी है, लेकिन ख़ुद को यहीं तक सीमित नहीं कर लेना चाहिए। असली यज्ञ तो यही है कि व्यक्ति अपनी बुद्धि की साधना करे। आज का युग शिक्षा का युग है, बुद्धि का युग है । कठोपनिषद् हमें बुद्धि की साधना करने की प्रेरणा देता है। यमराज कहते हैं - तुम बुद्धि की गुफा में प्रवेश करो। ज्ञान के प्रकाश को उपलब्ध करो। सच्चा प्रकाश ज्ञान का ही प्रकाश है। और प्रकाश तो आते-जाते रहते हैं । ज्ञान का प्रकाश ही वह प्रकाश है जो हमेशा बढ़ता रहता है - 1 सरस्वती के भंडार की बड़ी अपूरव बात । ज्यूँ खरचै त्यूँ -त्यूँ बढ़े, बिन खरचै घटी जाय ॥ ज्ञान के ख़ज़ाने की यही तो ख़ास बात है कि इसे जितना खरचेंगे, यह उतना ही बढ़ता जाएगा। जितना बाँटेंगे, उतना ही दुगुना - चौगुना होता जाएगा। गीता के भगवान कहते हैं, ‘ज्ञानाग्नि: सर्व कर्माणि भस्मसात् कुरुतेर्जुन' - हे अर्जुन, तुम ज्ञान रूपी अग्नि को प्रज्वलित करो। क्योंकि यह अग्नि सारे अज्ञान को जलाने में सक्षम है। हमें अपने जीवन में ज्ञान रूपी अग्नि प्रज्वलित करने का प्रयास करना चाहिए। कंधे-कंधे मिले हुए हैं, कदम-कदम के साथ हैं। पेट करोड़ों भरने हैं, पर उससे दुगुने हाथ हैं। जीवन को मायूस और निराश बनाने की बजाय, उत्साह और उमंग के साथ जीना चाहिए । कठोपनिषद् से प्रेरणा लीजिए और अपने घर में ज्ञान की ज्योत जलाइए। केवल ब्राह्मण लोग ही ज्ञान की शरण ग्रहण न करें। हर जाति, हर कौम, हर वर्ग ज्ञान से प्रकाशित हो । जैसे चरित्र इंसान की ताक़त होती है, वैसे ही ज्ञान उसके विकास की आधारशिला होती Jain Education International 90 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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