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________________ करता था, अब पैरों से करने लगा।आख़िर उसकी जिंदगी पटरी पर लौट आई। कहाँ तो वह पटरी पर अपनी जान देने गया था और कहाँ जिंदगी पटरी पर फिर से दौड़ने लगी। अपने भीतर की अग्नि को सही तरीके से उपयोग में लेने का ही यह परिणाम था। उसके भीतर की अग्नि का प्रभाव कम हुआ, तो वह मरने चल पड़ा था, लेकिन जैसे ही अग्नि-तत्त्व जागृत हुआ, ज़िंदगी में रंग भर गए। भीतर नई ऊर्जा का संचार हुआ। यह भीतर अग्नि का जगना ही है। वह सैनिक निराशा के बादलों से निकल आया।आशा का सूरज उग आया। जिसकी अग्नि बुझ गई, उसका जीवन बुझ गया। जिसकी अग्नि जल गई, वह आगे बढ़ गया। कठोपनिषद् जैसे पवित्र शास्त्र की आखिर रचना क्यों हुई? जिसमें जीवन की बजाय मृत्यु के बारे में लिखा है, उसका जीवन में क्या उपयोग? सवाल उठ सकता है कि हम लोग मृत्यु की चर्चा क्यों कर रहे हैं। वास्तव में हम लोग मृत्यु की चर्चा नहीं कर रहे। कठोपनिषद् पर चर्चा का अर्थ यही है कि हम जीवन पर चर्चा कर रहे हैं । इस जीवन की भी चर्चा कर रहे हैं और जीवन के उपरांत के जीवन की भी चर्चा कर रहे हैं। मृत्यु तो जीवन का उपसंहार है। मृत्यु जीवन की एक कड़ी है। मृत्यु जीवन को समाप्त नहीं करती, अपितु जीवन की धाराओं को नए-नए आयाम देती है। कोई इंसान सीढ़ी से ऊपर चढ़ता है, तो सीढ़ी उसे ऊँचाइयों पर ले जाती है। लेकिन नीचे उतरने वाले को वह नीचे भी ले आती है। मृत्यु एक सीढ़ी ही है जो मानव-जीवन को नए आयाम देती है। मृत्यु उस लोक की ताक़त है, जबकि अग्नि इस लोक की शक्ति है। नचिकेता ने यमराज से अग्नि का रहस्य जानना चाहा। यमराज ने अग्नि की जो व्याख्या की, उसका सार यही निकलता है कि इंसान को अपनी बुद्धि को पराकाष्ठा तक ले जाना चाहिए; अपनी प्रज्ञा को, मेधा को, प्रतिभा को जागृत करना चाहिए। यह सबसे महान् यज्ञ है। ईश्वर ने जो हमें बुद्धि दी है, उसे और पैना बनाने का प्रयास करना चाहिए। पेंसिल चलाते-चलाते मोटी हो जाती है तो हम उसे पैना करते हैं, बुद्धि के मामले में भी ऐसा ही है। चलते-चलते हमारी बुद्धि भी मोटी हो जाती है। कितने लोग हैं जो इसे फिर से धार देते हैं ? यज्ञ में अग्नि की उपासना का यही अर्थ है कि भीतर प्रेरणा का दीप जल उठे। निराशा-भाव न रहे । बुद्धि निरंतर प्रखर होती चली जाए। लोग बुद्धि का उपयोग तो करते हैं, लेकिन समय-समय पर उसे धार नहीं लगाते। एक व्यक्ति कुल्हाड़ी लेकर पेड़ काटने निकला। पहले दिन उसने बीस पेड़ काट डाले। अगले दिन वह दस पेड़ ही काट सका। तीसरे दिन सुबह से शाम हो गई लेकिन वह चार से ज़्यादा पेड़ नहीं काट सका। चौथे दिन एक भी पेड़ नहीं कटा, तो 89 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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