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________________ ठीक से बीते, लेकिन धीरे-धीरे वह घर में एक निरर्थक चीज़ बनकर रह गया। पुरुष कमाता और स्त्री घर का काम करती सबको अच्छी लगती है। काम न करे, तो माँ को बेटा और पत्नी को पति भी नहीं सुहाते। एक दिन वह इतना व्यथित हुआ कि उसने आत्महत्या करने की सोच ली और घर से निकल गया। वह रेल लाइन पर जाकर सो गया। जब वह सो गया, तो उसकी नज़र अपने पाँवों की तरफ पड़ी। उसके मन में सकारात्मक विचारों ने जन्म लेना शुरू कर दिया। सोचने लगा, हाथ कट गए तो क्या, दोनों पाँव तो अभी मौजूद हैं । साँस तो चलती है। अभी तो मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ। प्रभु ने यह जीवन यूँ ही समाप्त करने को तो नहीं दिया। मरना इंसान की मजबूरी हो सकती है, लेकिन मरना इंसान का लक्ष्य कतई नहीं है। मरना मना है। मारना बिल्कुल मना है। सहज मरना जीवन का उपसंहार है। जानबूझ कर मरना आत्महत्या है। आत्महत्या पाप है, आत्महत्या अपराध है। इसीलिए मरना मना है। आपने कभी लतीफ़ों की किताब देखी होगी। उसका शीर्षक होता है, हँसना मना है। अब लतीफा पढ़कर तो हँसी आएगी ही। फिर भी लिखा है, हँसना मना है। यही तो खूबी है किताब की। वे किताबें कहती हैं हँसना मना हैं; मैं कहता हूँ मरना मना है। इंसान जीने के लिए है, मरने के लिए नहीं। एक बेशक़ीमती जिंदगी को समाप्त करने का किसी को क्या हक़ है? यमराज के सामने जाने वाला यदि डर गया, तो उनसे बात कैसे कर पाएगा। नचिकेता नहीं डरा, तभी तो यमराज को उसे वरदान देने पड़े। वरदान भी कैसे, नचिकेता ने वरदान में यमराज से मृत्यु का रहस्य ही पूछ लिया। नचिकेता जीवन का प्रतीक है और यमराज साक्षात् मृत्यु का। दोनों के बीच होने वाला संवाद जीवन और मृत्यु के बीच होने वाला संवाद है। नचिकेता अर्थात् एक जीवन जो यमराज अर्थात् मृत्यु से साक्षात्कार करने पहुंचा था। हम सब जीवन के प्रतीक हैं। जीवन का आनन्द ही कुछ और है। याद रखो - जीवन जीने के लिए है, मरने के लिए नहीं। जो भी उपाय करो, जीने के लिए करो। मरना तो अपनेआप होगा। जीना अपने आप नहीं हो सकता। जीने के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते हैं। कई तरह के संघर्ष और पुरुषार्थ करने होते हैं। धरती जीने के लिए है, कुछ फूल खिलाने के लिए है। मुरझाने का पुरुषार्थ तुम मत करो। यह पुरुषार्थ प्रकृति को ही करने दो। हम तो पुरुषार्थ जीने का करेंगे, संजीदगी से जीने का करेंगे। वह सैनिक इतना सोचते ही ऊर्जा से भर उठा कि अभी उसके दोनों पाँव हैं। हाथ कट गए तो क्या हुआ, पाँव अभी सुरक्षित हैं। उसने नए सिरे से जिंदगी को समझना प्रारंभ किया। उसने पाँवों से लिखना शुरू किया और जो काम कभी वह हाथों से किया 88 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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