SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घड़ी-दो-घड़ी रहा जाए या सूर्य स्नान किया जाए, तो इससे हमारे शरीर का स्ट्रक्चर मज़बूत होता है। हड्डियाँ मज़बूत होती हैं । सूर्य की ऊर्जा से हमें विटामिन डी मिलता है। कोई मुझसे पूछे कि आत्मबल और आत्मविश्वास क्या है तो मैं यही कहूँगा कि मन में अग्नि-तत्त्व की प्रधानता होना ही आत्मबल और आत्मविश्वास है। हमारे ऊर्जा भरे शब्द लोगों की सोई हुई चेतना को जगा देते हैं । यह चेतना का जगना वास्तव में अग्नि का जगना है। मनुष्य के भीतर अग्नि के भी कई रूप होते हैं। आपने देखा होगा, किसी इंसान को गुस्सा आता है, तो उसकी साँस तेज चलने लगती है, आँखें लाल हो जाती हैं। दरअसल गुस्सा आने पर दिमाग का टेम्प्रेचर और शरीर का ब्लड-प्रेशर बढ़ जाता है। यह वास्तव में शरीर में अग्नि का उदय है, जिससे हमारे किसी भी क्रिया-कलाप से उसके आयाम बदलने लगते हैं। व्यक्ति के भीतर का अग्नि-तत्त्व जब अधोगामी हो जाता है, तो उसका ब्लड-प्रेशर घट-बढ़ जाता है । क्रोध भीतर पैदा होता है, तो अग्नि अधोगामी हो जाती है । गुस्सा या कामजनित वेग उठने पर हम शरीर को गर्म महसूस करते हैं। मानो, बुखार चढ़ गया हो। क्रोध क्या है, शरीर में छिपा बुखार । बुखार आने पर शरीर तपने लग जाता है। जब भोग की इच्छा जगती है तब शरीर गर्म होने लगता है, साँसें तेज चलने लगती हैं, शरीर ऊष्मा-प्रधान हो जाता है, रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। यह भी अग्नि का ही एक स्वरूप है । भोग के समय अग्नि तेज हो जाती है, तो सृजन करती है। भीतर की अग्नि जब-जब प्रबल और प्रखर होती है, तब-तब मानव-जीवन के विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। आशा और निराशा कुछ ऐसी ही हैं। हमारे भीतर आशा का संचार हो रहा हो, तो इसका अर्थ है कि भीतर स्थित अग्नि जाज्वल्यमान हो रही है, हमारा आभामंडल तेज हो रहा है। निराशा का अर्थ है - हमारे भीतर की अग्नि की आँच मंद हो गई है। वैदिक परंपरा में यज्ञ के अनुष्ठान शुरू किए गए, तो उनमें अग्नि-तत्त्व को प्रधानता दी गई। कोई यह न समझे कि अग्नि की पूजा से भगवान मिल जाएँगे। यज्ञ में जलाई जाने वाली अग्नि यह प्रेरणा देती है कि जैसे यज्ञ के कुण्ड में अग्नि की आहुति देने से देवता प्रसन्न होते हैं, ठीक वैसे ही हमारे भीतर सात्त्विक अग्नि प्रकट हो जाए, तो यह अग्नि हमारे जीवन के विकास का आधार बन सकती है; हमारे मनोबल, आत्मविश्वास को मज़बूत कर सकती है और यही अग्नि परमात्म-तत्त्व से मिलने का हमारा मार्ग प्रशस्त कर सकती है। कहते हैं, एक आदमी के दोनों हाथ कट गए। वह सेना में था। युद्ध में उसे अपने दोनों हाथ खोने पड़े। उसे सेना से मुक्ति दे दी गई। वह घर लौट आया। कुछ दिन तो 87 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy