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________________ मरना मना है काई भी दैवीय शक्ति अपने किसी भी भक्त पर प्रसन्न होती है, तो उसे सहज ही उसका मनचाहा वरदान देना चाहती है। दैवीय शक्ति को पहले से ही यह अहसास होता है कि पृथ्वी-गृह पर रहने वाले इंसान किसी-न-किसी प्रयोजन से ही दैवीय शक्ति का आह्वान करते हैं । नचिकेता को भी यमराज ने प्रसन्न होकर कहा कि माँगो वत्स, क्या माँगते हो? मैं तुम्हें तीन वर देने को उत्सुक हूँ। तब नचिकेता ने पहले वरदान के रूप में अपने पिता की प्रसन्नता चाही थी, अर्थात् मेरे पिता मुझ पर प्रसन्न हों, मेरे माता-पिता का जीवन सुखमय हो। मेरे प्रति उनका प्रेम बना रहे। उनका शेष जीवन प्रभु के प्रति समर्पित हो। किसी भी संतान का पहला दायित्व यही होता है कि उसके माता-पिता उससे प्रसन्न हों। माता-पिता रुष्ट होकर अपनी संतान के प्रति शिकवा या शिकायत करें, यह किसी भी संतान के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता। माता-पिता की नाराज़गी संतान के लिए देवताओं के रुष्ट होने के समान है। उनकी प्रसन्नता देवताओं की पूजा के समान है। यमराज ने अपनी ओर से तथास्तु कहते हुए, नचिकेता को पिता की प्रसन्नता का वरदान दिया। नचिकेता ने दूसरे वरदान के रूप में यमराज से प्रार्थना की कि लोग स्वर्ग की प्राप्ति के लिए यज्ञ करते हैं, उसमें अग्नि तथा अग्नि-विद्या की उपासना करते हैं, उस अग्नि-विद्या का रहस्य क्या है। यमराज ने समझाया कि अग्नि-विद्या मनुष्य की बुद्धि रूपी गुफा में स्थित है। जीवन में यह बात भली-भाँति जान लेनी चाहिए कि इंसान के जीवन में जिन-जिन पदार्थों और तत्त्वों का महत्त्व है, उनमें अग्नि अत्यंत प्रधान तत्त्व है। सामान्य तौर पर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश - इन पाँच तत्त्वों को हम सभी महत्त्व देते हैं, लेकिन जीवन और मृत्यु की दहलीज़ पर हम कोई अंतर करना चाहें, तो अग्नि ही वह 85 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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