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________________ आपको हाथी तो मिलने से रहा।' इस तरह के तात्कालिक जवाब भले ही एक बार आपको हँसा दें, लेकिन यह सच है कि ऐसे लोग ही आगे बढ़ जाते हैं। यमराज ने नचिकेता को ज्ञान देते हुए कहा, हे नचिकेता, तुम अग्नि का स्थान बुद्धि जानो। बुद्धि वाली गुफा में ही अग्नि-तत्त्व विद्यमान रहता है। हम लोग जब ध्यान करते हैं, तो बुद्धि से एकाकार होते हैं। बुद्धि में स्थित होते हैं। अग्नि-तत्त्व में ही स्थित हो रहे होते हैं । तब ईश्वर में स्थित हो रहे होते हैं । जीवन की मूल ऊर्जा में स्थित हो रहे होते हैं। बुद्धि को बढ़ाने के दो तरीके हैं - पहला स्वाध्याय, दूसरा ध्यान। याद रखो, केवल दो ही तत्त्व उपयोगी नहीं बनेंगे। बुद्धि को बचाने के लिए चिंता से बचो। तनाव से बचो। क्रोध से बचो। तनाव मत पालो। कहीं ऐसा न हो कि ध्यान तो करते रहे और साथ में चिंता भी पाल ली, तनाव को भी ओढ़ लिया। बात-बात में क्रोध न करो। ऐसा करते रहे, तो ध्यान-स्वाध्याय में जितनी ऊर्जा खर्च करोगे, उससे कहीं ज़्यादा ऊर्जा चिंता और तनाव में खर्च कर दोगे। इसलिए शांति, आनन्द, एकाग्रता पर जोर दो। ये वे चीजें हैं जो हमारी बुद्धि को और बढ़ाती हैं। जीवन में रचनाधर्मिता होनी चाहिए। केवल बैठे न रहें । अपनी बुद्धि का उपयोग करते रहें। कुछ सार्थक कार्य करें। लगना चाहिए कि आज का दिन कुछ किया, तो अमुक परिणाम निकला। कम्प्यूटर के आगे बैठ जाएँ। फैक्ट्री चले जाएँ। और कुछ काम न हो, तो कोई अच्छी किताब ही पढ़ने बैठ जाएँ। गीत लिखें, कविता लिखें। बुद्धि का सार्थक उपयोग होता रहना चाहिए। शांति और एकाग्रता जीवन में उतरनी चाहिए। प्रसन्न रहें, मिलनसार बनें। सकारात्मकता को जीवन में जोड़े रखें। इससे हमारी बुद्धि और प्रखर होगी। हमारा व्यक्तिगत विकास होगा। जो इंसान अपनी बुद्धि से एकाकार होता है, वह अपने भीतर अग्नि-तत्त्व आत्मसात कर रहा होता है। अग्नि-तत्त्व को साधने का सबसे बढ़िया उपाय है, बुद्धि का अधिकतम उपयोग। बुद्धि-तत्त्व में ही ईश्वर की तलाश करो। बुद्धि को जितना काम में लोगे, उसका पैनापन बढ़ता जाएगा। ऐसा करने से अग्नि-तत्त्व का बुद्धि में स्थायी निवास रहेगा। फिर कोई भी यज्ञ हो, उसे फलीभूत होना ही होगा। 84 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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