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________________ तो किसी भी मंदिर या मस्जिद में हमारी प्रार्थना कबूल नहीं होगी। पहली दुआ माँ-बाप के आशीर्वाद से ही कबूल हो पाएगी। नचिकेता ने यमराज से पहला वर यही माँगा, 'मैं यहाँ से धरती पर जाँऊ तो मेरे माता-पिता मुझ पर प्रसन्न हो । नचिकेता ने बड़ी चतुराई से एक वरदान में दो वर माँग लिए। पहला तो यही कि मैं यहाँ से धरती पर जाऊँ, यानी आप मुझे यहीं यमलोक में न रख लें। दूसरा यह कि धरती पर जाऊँ तो माता-पिता का प्यार मुझे मिल जाए। यमराज कहते हैं, तथास्तु । मैं तुम्हें वरदान देता हूँ, तुम धरती पर जाओगे तो तुम्हारे माता-पिता तुमसे पहले की भाँति ही प्रसन्न होंगे। वे तो तुम्हें जीवित देखकर ही फूले न समाएँगे, तुम्हें सीधा गले से लगा लेंगे। ___ यमराज ने कहा, 'नचिकेता, अब तुम दूसरा वरदान माँगो।' नचिकेता ने कहा, 'सुनते हैं कि स्वर्ग में कोई दुख नहीं है, मृत्यु का भय नहीं है। वहाँ जाने वाले आनन्द का उपभोग करते हैं। इसलिए हे मृत्यु देवता! आप मुझे स्वर्ग के बारे में बताएँ। उस स्वर्ग के बारे में, जिसके लिए कहा गया है कि यज्ञ में अग्नि के साथ आहुतियाँ देकर स्वर्ग की प्राप्ति की जाती है, यज्ञ की उस अग्नि का क्या अर्थ है? वह अग्नि कहाँ रहती है? स्वर्ग में ऐसा क्या है, जो सब यहाँ आने की चाह करते हैं ?' ___ स्वर्ग के बारे में हर किसी को चाह होती है। धरती पर आने वाला कोई भी प्राणी स्वर्ग जाना चाहता है । इसके लिए वह पूजा-पाठ करता है, शील-व्रत धारण करता है, यज्ञ करता है। धर्म के नाम पर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। सवाल बहुत महत्त्वपूर्ण है। तीन लोक माने गए हैं - पृथ्वी-लोक, स्वर्ग-लोक व नरक-लोक। नरक में दुःख ही दुःख है। स्वर्ग में सुख ही सुख है। पृथ्वी लोक में सुख और दुख दोनों हैं। इसलिए पृथ्वी लोक मध्य लोक कहलाता है। नरक में रहने वाले हमेशा पीड़ा भोगते रहते हैं । स्वर्ग में रहने वाले आनन्द का उपभोग करते हैं । पृथ्वी-लोक पर दोनों है। नरक के जीव वहाँ से निकलना चाहते हैं । स्वर्ग में रहने वाले वहाँ उपलब्ध भोगों को भोगने के बाद ऊब जाते हैं और वहाँ से पृथ्वी पर आना चाहते हैं । कठोपनिषद् कहता है, स्वर्ग-लोक में किसी तरह का रोग, शोक, दुख नहीं है। बुढ़ापा नहीं है, लेकिन यह अधूरा सच है । वास्तव में स्वर्ग में भी ईर्ष्या, लालच, भोग है। तभी तो दानवों ने जब स्वर्ग-लोक पर आक्रमण किया, तो देवराज इन्द्र भागे-भागे भगवान विष्णु के पास गए। वहाँ से उपाय बताए जाने पर वे महर्षि दधीचि के पास गए और उनके देहदान की स्थितियाँ बनीं। दधीचि की हड्डियों से बने वज्र से दानवों का नाश हो सका। इसलिए परेशानियाँ स्वर्ग में भी कम नहीं हैं। 79 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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