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________________ धनुर्धारी अर्जुन स्वर्ग पहुँचते हैं, तो उर्वशी उन पर मुग्ध हो जाती है। अर्जुन तो दैवीय धनुर्विद्या पाने स्वर्ग पहुँचते हैं और उर्वशी उन पर काम का बाण चलाती है। अर्जुन उन्हें इनकार कर देते हैं। उसका प्रणय का प्रस्ताव ठुकरा देते हैं। इससे क्रोधित होकर उर्वशी अर्जुन को श्राप दे देती है। सो, स्वर्ग में भी श्राप है, शराब है, क्रोध है, काम है। उर्वशी का अर्जुन पर मोहित होना साबित करता है कि भोग की प्रवृत्ति वहाँ भी कम नहीं है। कामाँधता वहाँ भी पाई जाती है। धृतराष्ट्र वहाँ भी बैठे हैं। ययातियों की वहाँ भी भीड़ है। कहते हैं, विश्वामित्र ने घोर तपस्या की। इन्द्र को लगा कि उसका सिंहासन कोई छीन न ले। उन्होंने मेनका को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने भेज दिया। कोई कितना ही बड़ा साधु-ज्ञानी क्यों न हो, फिसल सकता है। वह भी आखिर इंसान है। भला जब देवता फिसल सकते हैं, तो बिचारे इंसानों की क्या बिसात? विश्वामित्र भले ही संत क्यों न हों, पर थे तो आखिर इंसान ही। इंसानी फितरत तो उनकी भी थी, सो विश्वामित्र की तपस्या भंग हो गई। मानवीय कमजोरी हर स्थान पर विद्यमान रहती है। मेनका हर जगह काम कर जाती है, विश्वामित्र हर जगह पराजित हो जाते हैं। स्वर्ग की गत तो आपने जान ली है, सो स्वर्ग भी बुराइयों से अछूता नहीं है। आम आदमी सुखों का उपभोग करना चाहता है। वह चाहता है कि उसके पास मर्सिडीज गाड़ी हो। विशाल घर हो। बहुत-सी फैक्ट्री हों। धन बरस रहा हो। खूब इज़्ज़त हो। ये सब क्या हैं ? धरती पर स्वर्ग जैसा सुख ही तो है। कुछ लोग धरती पर भी स्वर्ग जैसा सुख भोगते हैं और मरकर भी स्वर्ग में चले जाते हैं। जिनके नसीब में धरती पर स्वर्ग का सुख नहीं, वे अच्छे कर्म कर स्वर्ग पा लेते हैं। नचिकेता पछ रहे हैं. 'हे यमराज, ऐसा क्या है स्वर्ग में जिसके लिए लोग इतने लालायित रहते हैं। धरती पर रहने वाले स्वर्ग प्राप्ति के लिए विशाल यज्ञ करते हैं। इन यज्ञों में जो अग्नि जलती है, वह कहाँ रहती है। उसका रहस्य क्या है ? आप मुझे दूसरे वर के रूप में इस अग्नि का रहस्य बताएँ।' यमराज कहते हैं, 'हे नचिकेता, स्वर्गदायिनी अग्नि-विद्या को जानने वाला मैं, तुम्हारे लिए उसे भली-भाँति बतलाता हूँ, उसे मुझसे समझ लो। तुम इस विद्या को अविनाशी लोक की प्राप्ति कराने वाली, उसका आधार बुद्धि रूपी गुहा में स्थित जानो।' जो लोग अग्नि की आराधना करते हैं, यज्ञादि करते हैं, यमराज उन्हें बताना चाह रहे हैं कि आखिर वह अग्नि रहती कहाँ है? यमराज कहते हैं, तुम उस अग्नि को अपनी बुद्धि रूपी गुफा में स्थित जानो। इस गुह्य विद्या को मैं तुम्हें बताता हूँ । इसे जानकर सभी जीव उस अनन्त व अविनाशी स्वर्ग-लोक को प्राप्त होते हैं। इसे गहन बुद्धि से ही समझा जा सकता है। 80 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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