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________________ हुआ होगा, लेकिन पिता के कहे वचनों की आन रखने के लिए नचिकेता जैसा पुत्र यमराज के द्वार तक चला आया था। यमराज ने जब वर देने चाहे तो पुत्र के मुख से यही निकला, मेरे पिता मुझ पर पहले की भाँति प्रसन्न हो जाएँ। किसी भी व्यक्ति पर गुरु का उपकार सौ गुना होता है, पिता का उपकार हज़ार गुना होता है और माँ का उपकार लाख गुना होता है। जिस व्यक्ति का हम पर उपकार हो, वह हमसे रूठा रहे, तो यह हमारे लिए मरने के समान होगा। माता-पिता तो हमारे जीवन के अंग हैं। न केवल अंग हैं, अपितु हमारे जनक, पालक और संरक्षक भी हैं। जन्म देने के कारण वे हमारे ब्रह्मा हैं । पालन करने के कारण वे हमारे विष्णु हैं और संस्कार देकर जीवन का उद्धार करने के कारण वे हमारे शिवशंकर हैं । जब हम इस धरती पर आँख खोलते हैं, तो सिर्फ उन्हीं की बदौलत । जीवन में कुछ बनते हैं, तो उन्हीं के कारण। हमारा पालन-पोषण होता है, उन्हीं की बदौलत; हमें संस्कार मिलते हैं, उन्हीं की बदौलत । यानी कुल मिलाकर हमारे माता-पिता हमारे मंदिर हैं, तीर्थ हैं, ईश्वर हैं । वे हमारे सखा भी हैं और सीख देने वाले आचार्य भी। हर संतान का दायित्व है कि वह अपने माता-पिता के प्रति फ़र्ज़ को समझे। माता-पिता ने संतान के लिए जो कुछ किया है, उसका मूल्य तो चुकाया नहीं जा सकता, लेकिन संतान को ऐसा भी कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे उनका दिल दुखे, या उनके मन में हमारे प्रति अफसोस जाहिर हो। ___एक पुरानी कहानी है। एक युवक एक वेश्या के प्यार में पड़ गया। वेश्या कभी किसी एक व्यक्ति से प्यार नहीं किया करती। युवक तो उस पर ऐसा दीवाना हो गया कि उससे विवाह करने तक की सोचने लगा। एक दिन उसने अपने दिल की बात वेश्या से कह दी। वेश्या हैरान हो गई। भला किसी एक से विवाह करके वह बंधन में कहाँ बँध सकती थी। उसने युवक को टालने के लिए कह दिया, 'मुझसे शादी करने के लिए पहले मोल चुकाना होगा और मोल यह है कि तुम अपनी माँ का कलेजा मुझे लाकर दो। फिर में तुमसे विवाह कर सकती हूँ।' __ युवक को मानो मनचाही मुराद मिल गई। वह खुशी-खुशी घर पहुँचा। उसकी माँ ने उसे कहा, 'खाना गर्म कर देती हूँ, खा ले।' युवक को तो होश ही नहीं था। उसने माँ की बात को सुना-अनसुना किया और रसोई से चाकू लेकर उसके सीने में कई वार कर डाले। आँखों में हैरानगी के भाव लिये माँ ने दम तोड़ दिया। युवक ने माँ का कलेजा निकाला और वेश्या के यहाँ पहुँचा। वेश्या उसे देख हैरत में पड़ गई। उसने युवक के गाल पर तमाचा जड़ते हुए कहा, 'तुम इंसान नहीं, हब्शी और हैवान हो।अरे, जो अपनी माँ का न हो सका, वह अपनी बीवी का क्या होगा।' यह कहते हुए वेश्या ने अपने घर का दरवाजा बंद कर दिया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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