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न्य है
स्वर्ग का राज
यमराज के आतिथ्य-सत्कार को स्वीकार करते हुए 'शुभम् भूयात्' तथा 'शिवास्ते पंथानः' के भाव रखते हुए नचिकेता यमराज के शुभ की, कल्याण की कामना करते हैं। यमलोक की यह व्यवस्था है कि वहाँ पर कोई प्राणी मरकर ही पहुँच सकता है, लेकिन नचिकेता सशरीर यमलोक पहुँचे थे। ऐसी स्थिति में यमराज का दायित्व बनता था कि चाहे जिस भी तरह से वे यमलोक पहुँचे हों, उनका आयुष्य अभी शेष होने के कारण उन्हें पुनः धरती पर भेजा जाए; लेकिन उन्हें खाली हाथ भी तो नहीं भेज सकते थे। एक ब्राह्मण अतिथि के रूप में यमराज के द्वार पर पहुँचा था। यमराज की पत्नी यमी भी उन्हें अतिथि का दर्जा दे चुकी थी। तब भला यमराज कैसे पीछे रह सकते थे? ऐसी स्थिति में यमराज ने आतिथ्य-सत्कार की परंपरा का निर्वाह किया, यही अपने-आप में प्रेरणास्पद घटना है। हम लोग इस बात से यह सीख ले सकते हैं कि जब यमराज जैसे देवता भी, कि जिनके नाम मात्र से रूह काँप उठती है, वह भी घर आए मेहमान को सम्मान देना अपना धर्म समझता है, तो हम लोग तो सामान्य लोग हैं । आतिथ्य-सत्कार को हमें अपना धर्म, घर की शोभा और रिश्तों का आधार मानना चाहिए।
किसी का अभिषेक करना हो, तो गंगाजल से उनके पाँव धोना आतिथ्य-सत्कार का पहला पायदान माना जाता है। यमराज ने भी ऐसा ही किया। उन्होंने नचिकेता का सम्मान करते हुए उन्हें भोजन-पानी के लिए अनुरोध किया, लेकिन नचिकेता वहाँ कोई भोजन करने तो गए नहीं थे। पिता के द्वारा मृत्यु को दान में दिए जाने के कारण ही उन्हें यमलोक तक की यात्रा करनी पड़ी थी। दुनिया में कौन व्यक्ति होगा, जो अपने लिए मृत्यु की वांछा या मृत्यु की कामना करेगा? जीवन जीने के लिए है। किसी को भी जन्म-जन्मान्तर की तपस्या के बाद मानव-जीवन मिलता है। बड़े सौभाग्य से खिलता है यह मानव-जीवन का फूल । इस तरह उपलब्ध हुए जीवन को भला कौन समाप्त कर यमलोक पहुँचना चाहेगा? कोई नहीं।
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