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________________ भिखारी स्तब्ध रह गया। यहाँ तो उल्टे लेने के देने पड़ गए। कहाँ तो वह लेने निकला था और कहाँ यहाँ देना पड़ रहा है। पर क्या करे, कोई माँगे, तो देना तो पड़ेगा। भिखारी भी जब घर से निकलता है, तो खाली हाथ नहीं निकलता। कटोरे में कुछ खोटी चवनियाँ, झोले में कुछ सूखी रोटियाँ या बासी अनाज साथ लेकर निकलता है। इससे माँगने में सुविधा रहती है। कटोरे में जब कुछ चवन्नियाँ रहती हैं, तो उसे देखकर देने वाला समझ जाता है कि यह कोई याचक है। अपने आप सहानुभूति पैदा हो जाती है। देने का जी कर लेता है। भिखारी ने अपनी झोली में हाथ डाला। देखा, उसकी पत्नी ने उसकी झोली में आज मुट्ठी-दो मुट्ठी चावल डाल दिए थे। भिखारी ने झोली में से एक चुटकी चावल निकाले और रथ से उतरे उस व्यक्ति के हाथ में दे दिए। उस व्यक्ति ने इस दान के लिए झुककर आभार व्यक्त किया और पुनः अपने रथ पर सवार होकर आगे बढ़ गया। यह सब हाल देखकर भिखारी इतना खिन्न हुआ कि उसे लगा, आज मुहूर्त ठीक नहीं हुआ, घर से निकलते ही अपनी ही जेब सलामत नहीं रही, अब आगे क्या मिलेगा? यह सोचकर वह वापस घर लौट आया और खीझ खाते हुए झोली अपनी घरवाली के आगे फेंक दी। झोली के चावल झोंपड़े के आँगन में बिखर गए। भिखारी और उसकी पत्नी के आश्चर्य का तब ठिकाना न रहा, जब उन्होने देखा कि चावल के उन दानों में कुछ दाने चमक रहे थे। करीब जाकर देखा तो पाया कि चावल के उतने दाने सोने के हो गए, जितने उसने उस व्यक्ति को दान में दिए थे। भिखारी ने अपनी पत्नी को सारा किस्सा बताया, तो पत्नी ने चिल्लाकर कहा, 'अरे दौड़कर जाओ, उस रथ वाले को ये बचे हुए सारे चावल भी दे आओ, ये भी सोने के हो जाएँगे।' भिखारी ने माथा पीटते हए कहा, 'अरी भागवान, अब वो रथ वाला कहाँ मिलने वाला है। लक्ष्मी तो मेरे द्वार आई थी, मैं ही उसे पहचान न पाया।' मिलेगा तो आखिर वही न, जो हम अपनी ओर से देंगे। कुदरत का तो कानून ही यही है - इस हाथ दे, उस हाथ ले। अपने घर में जब भी किराने का सामान खरीदो, तो केवल घर के सदस्यों तक के लिए ही मत खरीदना । एक हिस्सा पहले से ही उन लोगों के लिए खरीद लेना, जो हमारे घर में मेहमान बनेंगे। जिस घर में जा चुके मेहमान की सेवा हो चुकी है, और आने वाले मेहमान की इंतज़ारी हो रही है, उस घर में तो मैं और आप तो क्या, स्वयं भगवान भी कभी मेहमान बनकर आने की राह देखा करते हैं। किसी के यहाँ अतिथि बन कर जाएँ और वहाँ आपका स्वागत हो, यहाँ तक तो ठीक है। बाद में वहाँ कोई काम दिखे, तो अवश्य करें। केवल अतिथि ही बने न रहें। बेटे की 72 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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