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आतिथ्य सत्कार का तरीका
कठोपनिषद् में दी गई आतिथ्य सत्कार की भाषा बहुत ही सरस और अंतर-चक्षु खोलने वाली है । यमराज का नचिकेता से प्रथम साक्षात्कार में किया गया स्वागत अपने आप में बड़ी सीख दे जाता है। कठोपनिषद् कहता है कि यमराज ने बड़े ही विनम्र शब्दों में कहा, 'हे ब्राह्मण, आप नमस्कार करने योग्य अतिथि हैं, आपको नमस्कार है । हे ब्राह्मण! मेरा कल्याण हो। आप प्रथम तो ब्राह्मण हैं । फिर आप मेरे अतिथि हैं क्योंकि आप आयु पूरी होने से पूर्व ही यमलोक आए हैं। इसलिए आपकी सेवा व सत्कार करना मेरा कर्तव्य है । आपने जो तीन रात्रियों तक मेरे घर पर बिना भोजन किए निवास किया है, इसलिए आप प्रत्येक रात्रि के बदले मुझसे तीन वरदान माँग लीजिए ।
ऋषि उद्दालक यज्ञ के दौरान हुए घटनाक्रम में अपने पुत्र नचिकेता को यमराज को दान कर देते हैं । नचिकेता सशरीर यमलोक पहुँचते हैं। यमराज कहीं बाहर गए हुए होने नचिकेता यमलोक के द्वार पर ही उनका इंतजार करते हैं। इस दौरान यमी उनके लिए भोजन व आराम करने की व्यवस्था करवाना चाहती है, लेकिन नचिकेता विनम्रता से अस्वीकार कर देते हैं । जब कोई व्यक्ति किसी को दान में दे दिया जाता है, तो उसे वही करना चाहिए जो उसका मालिक आदेश दे । यमराज वहाँ नहीं थे, इसलिए नचिकेता यमलोक के द्वार पर ही खड़े हो गए ।
यमी ने पूरा प्रयास किया कि नचिकेता का आतिथ्य सत्कार किया जाए। कोई भी पत्नी हो, वह चाहेगी कि उसके पति का कल्याण हो । पति घर पर न हो और कोई अतिथि आ जाए, तो उसका पहला कर्त्तव्य यही होता है कि वह उसका स्वागत-सत्कार करे । वह नहीं चाहती कि उससे ऐसा कोई अनर्थ हो जाए, जिससे उसके पति के पुण्य नष्ट हो जाएँ। पत्नी अपने पति का भला ही चाहेगी।
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