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________________ नहीं किस कुत्ते से सावधान रहना है। लोगों का नजरिया बदल गया, शब्द बदल गए। अतिथि का सत्कार तो आज भी होता है। आज लोगों के पास खूब पैसा है। किसी ज़माने में गिने-चुने लोग ही लखपति हुआ करते थे। अब तो करोड़पतियों की संख्या भी इतनी है कि गिनी न जा सके। अरबपति भी खूब हो गए हैं। फ़र्क केवल इतना ही आया है कि पहले गैरों की भी सेवा होती थी, आजकल सिर्फ अपनों की ही सेवा होती है। पहले कोई गाँव से होकर गुजरता था, तो उसका सामर्थ्य अनुसार सत्कार किया जाता था। अब परिचितों का ही सत्कार होता है। पहले दाल-रोटी से काम चलता था। अब कोई अतिथि आ जाए, तो दो-तीन सब्जी बनती है। मिठाई भी रखी जाती है। हमारे एक प्रिय श्रावक हैं रमेश जी अग्रवाल। कागज के बड़े व्यापारी हैं। हमारे साहित्य-प्रकाशन में उनकी बहुत बड़ी भूमिका है। वे कहते हैं, प्रभु घर पधारते रहें, आपके आने से हमें भी उस दिन कुछ विशेष खाने को मिल जाया करता है। घरवाली चार व्यंजन बना लेती है। आपके सत्कार में हमारा ही स्वार्थ है। सत्कार करना ही चाहिए। ऊपर वाले ने दिया है तो बाँटो। आटा कोई पीपों में रखने के लिए तो होता नहीं है, पीपों में रखोगे तो ईलियाँ खा जाएँगी। अरे भाई, खाओगे और खिलाओगे तो ऊपरवाला ख़ज़ाना भरता रहेगा। केवल बटोरोगे, तो बटेर बन कर रह जाओगे। बटेर का क्या होता है, आप भली-भाँति जानते हैं। बहेलिया आएगा और बटेर का बँटाढार कर जाएगा। आजकल सत्कार का एक और तरीका हो गया है। किसी के घर जाएँ, तो घरवाली एक ऐसी प्लेट ले आती है जिसके चार खानों में बादाम, काजू, किशमिश, अखरोट भरे होते हैं। ___मैं एक बार किसी के यहाँ मेहमान बना। घरवाली ऐसी ही प्लेट ले आई। मैं चौंका, अरे इतने महँगे ड्राई फ्रूट। उसने राज की बात बताई, महाराजश्री! ये काजूबादाम सस्ते पड़ते हैं। मैंने पूछ लिया, वो भला कैसे? उसने बताया, चार लोग घर में आए, प्लेट उनके आगे कर दी। उठाकर भी वे कितना लेंगे। एक-एक बार प्लेट में हाथ डालेंगे, तब भी माल बचा रह जाएगा। एक बार की भरी हुई प्लेट कई महीने चल जाती है। किसी के स्वागत के लिए काजू-बादाम सबसे सस्ती चीज साबित होती है। अन्य नाश्ता रखें तो महँगा पड़ता है। अगर मैं नाश्ते की प्लेट में दो नमकीन, दो मिठाई और चाय-कॉफी रखू, तो सारी उठ जाएगी। बादाम-काजू रखो, तो दो-चार पीस उठते हैं। नाम बड़ा, दाम छोटा। ___बात नचिकेता के स्वागत की हो रही थी। यमी ने पति से कहा, तो यमराज ने विचार किया कि ब्राह्मण का स्वागत-सत्कार न किया, तो उसका यश कलंकित हो जाएगा। पुण्य क्षीण हो जाएँगे। सुख-शांति रूठ सकती है। ब्राह्मण को रुष्ट क्यों किया 64 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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